भारत का जननांकीय लाभांश अर्थात् बढ़ती हुई युवा आबादी भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने की क्षमता रखती है, परन्तु रोजगार के अभाव में यही जननांकीय लाभांश अर्थव्यवस्था के लिए जननांकीय बोझ बन सकता है।
जननांकीय लाभांश की इस बहस मेंं बढ़ती बुजुर्गों की आबादी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अनुमानतः 2026 तक भारत में बुजुर्गों की आबादी करीब 17.3 करोड़ हो जाएगी जिसका एक बहुत बड़ा हिस्सा गरीब, वंचित, महिला वर्ग, दिव्यांग और असंगठित क्षेत्र से आएगा। इस तबके को जीवनयापन के लिए वित्तीय सहायता के साथ साथ मनोवैज्ञानिक सहारे की भी जरूरत होगी।
सामाजिक सुरक्षा समाज के संवेदनशील वर्गों को सहायता देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 43 के अन्तर्गत लोकतांत्रिक सरकार की जिम्मेदारी है। इंदिरा गांधी वृध्दावस्था पेंशन योजना और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन जैसी योजनाएं वृध्दों की सामाजिक सुरक्षा का सुनिश्चित करती हैं।
सेवानिवृत्ति पश्चात सुनिश्चित पेंशन सरकारी नौकरियों के प्रति आकर्षण का मुख्य कारण रहा है, लेकिन निजी क्षेत्र में ऐसी कोई सुविधा नहीं थी। निजी क्षेत्र से सेवानिवृत्त लोगों के लिए उनकी बचत ही जीवन यापन का स्रोत है। और उनकी इसी बचत पर बच्चों की शिक्षा और बेटियों की शादी का बोझ पड़ता है जिससे उनके अपने दैनिक खर्चों और स्वास्थ्य इत्यादि पर खर्चने के लिए न के बराबर धन बचता है। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार ने राष्ट्रीय पेंशन योजना, अटल पेंशन योजना, स्वावलंबन योजना इत्यादि आरम्भ की हैं ताकि वृध्दावस्था में आय का एक न्यूनतम साधन बना रहे।
भारत में कृषि एक व्यवसाय के रूप में सदैव ही नुकसानदेह रही है जिसका कारण मानसून की अनिश्चितता, सिंचाई का अभाव तथा जैविकीय कारक रहे हैं।
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