विज़न
तीव्र धारणीय एवं समावेशी विकास के लिए विज्ञान चालित समाधानों की खोज को बढ़ाना।
उद्देश्य
भारत को शीर्ष पांच वैश्विक वैज्ञानिक शक्ति वाले देशों की सूची में शामिल करना।
प्रासंगिकता/उपादेयता
आज विज्ञान विकास एवं प्रगति का अहम् साधन है। दुनिया के विकसित देशों ने विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करके ही वैश्विक धाक जमाई है। किन्तु आजा़दी के 70 वर्षों बाद भी भारत पिछड़ा हुआ है, नतीजतन परावलम्बी है। यही वजह है कि हम गरीबी, भुखमरी, असमानता, अशिक्षा, बिमारी और शोषण से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। हमारे देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रतिष्ठानों में सरकार का प्रभुत्व है और दुनिया भर में ज्यादातर सरकारी इकाईयों की तरह ही उसमें जोखिम लेने की कार्य संस्कृति तथा नवोन्मेष का अभाव बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मैसूर में 103वीं विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन करते हुए कहा - "सुशासन केवल नीतियां बनाना और निर्णय लेना मात्र नही हैं, बल्कि सुशासन विज्ञान और प्रौद्योगिकी को जोड़कर विकल्प पेश करने और रणनीति तैयार करने की व्यवस्था है।" प्रधानमंत्री ने पांच - ई (Five Es) पर फोकस किया है- अर्थव्यवस्था (Economy), पर्यावरण (Environment), ऊर्जा (Energy), संवेदना (Empathy), तथा समानता (Equality)। साथ ही नवोन्मेष को रेखांकित करते हुए वैज्ञानिकों से अपील की है कि वे पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक ज्ञान के बीच की खाई को खत्म करें जिससे कि चुनौतियों के स्थानीय और अधिक स्थायी समाधान खोजे जा सकें। चूंकि वर्तमान भारत के ग्रामीण क्षेत्रों से आ रहे नए - नए आविष्कारों ने न केवल भारत में बल्कि विश्व मंच पर भी अपना लोहा मनवाया है। यदि इन प्रतिभाओं की रचनात्मकता को भी मान्यता मिलती है तो स्थानीय स्तर पर जरूरतों के हिसाब से उपकरणों के निर्माण का सिलसिला तेज हो सकता है। अतः विज्ञान नीति को गांव और ग्रामीण आविष्कारों से जोड़ने की अत्यन्त जरूरत है तभी भारत में विकास की गूंज चहुंओर सुनाई देगी।
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