Friday 15 September 2017

चकमा, हाजोंग शरणार्थियों को नागरिकता 

चकमा, हाजोंग शरणार्थी:

‘चकमा’ और ‘हाजोंग’ मूल रूप से तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र के निवासी हैं, जिन्हें 1960 के दशक में ‘कप्ताई बांध परियोजना’ में उनकी ज़मीन जलमग्न होने के कारण पलायन करना पड़ा था। चकमा बौद्ध हैं और हाजोंग हिंदू समुदाय के लोग हैं।

इन्हें उस दौरान पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था, अतः वे तत्कालीन असम के लुशाई जिले (वर्तमान में यह मिजोरम में हैं) से होकर भारत में प्रवेश करने लगे एवं यहाँ शरणार्थियों के रूप में रहने लगे।

कालांतर में चकमा समुदाय को असम में अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा प्रदान किया गया वहीं हाजोंग समुदाय को असम और मेघालय में अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिया गया। वर्तमान में पूर्वोत्तर राज्यों की सरकारें उन्हें बुनियादी सुविधाएँ प्रदान कर रही हैं लेकिन उन्हें नागरिकता और भूमि-अधिकार नहीं प्रदान किया गया। 1964-69 में इनकी आबादी करीब 5000 थी। अब इन शरणार्थियों की आबादी 100,000 हो गई है।

केंद्र सरकार ने सभी चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने का निर्णय लिया है, लेकिन उन्हें पूर्वोत्तर के मूल निवासियों जैसा अधिकार नहीं दिया जाएगा। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने 13 सितम्बर 2017 को यह जानकारी दी। पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए चकमा और हाजोंग शरणार्थी अरुणाचल प्रदेश में रह रहे हैं।

चकमा-हाजोंग शरणार्थी मुद्दे पर एक उच्चस्तरीय बैठक में चर्चा हुई। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की ओर से बुलाई गई बैठक में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू, केंद्रीय गृह राज्यमंत्री रिजिजू और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल एवं अन्य ने हिस्सा लिया।

किरण रिजिजू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 2015 के आदेश का पालन करने के लिए बीच का रास्ता अपनाया जाएगा। शीर्ष अदालत ने चकमा-हाजोंग को नागरिकता प्रदान करने का आदेश दिया था। नागरिकता देने में स्थानीय लोगों के अधिकारों का हनन नहीं किया जाएगा। चकमा-हाजोंग समुदाय के लोग 1964 से अरुणाचल प्रदेश में हैं।

उन्हें एसटी का दर्जा नहीं दिया जाएगा और मूल निवासियों के अधिकारों का घालमेल नहीं होगा। हालांकि उन्हें इनर लाइन परमिट दिया जाएगा। अरुणाचल प्रदेश में गैर स्थानीय लोगों को यात्रा और काम करने के लिए यह परमिट जरूरी है।

Opposition to citizenship

Several organisations and civil society in Arunachal Pradesh are opposing granting citizenship to refugees saying it would change demography of state and would reduce indigenous tribal communities to minority and deprive them of opportunities. The Union Government is trying to find workable solution by proposing that these refugees will not be given rights to own land, which are exclusively enjoyed by Scheduled Tribes in Arunachal Pradesh. However, Government may be given Inner Line permits (required for non-locals to travel and work in three states Arunachal Pradesh, Mizoram and Nagaland).

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