Monday 29 January 2018

बजट से जुड़े प्रमुख तथ्य:

बजट शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच भाषा के 'बूजट' (bowgette) से हुई बताई जाती है। 'बूजट' का अर्थ होता है 'चमड़े की थैली' इस आप बैग समझ सकते हैं। बजट के वर्तमान स्वरूप का यदि इतिहास में सबसे पहले उल्लेख देखा जाए तो यह सबसे पहले 1773 में मिलता है।

भारतीय बजट संसद में राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित तिथि पर प्रस्तुत किया जाता है।

वित्त मंत्री का बजट भाषण सामान्यतः दो भागों में होता है। भाग ए देश के सामान्य आर्थिक सर्वेक्षण से संबंधित है जबकि भाग बी कर संबंधी प्रस्तावों से संबंधित है। वित्त मंत्री हर साल फरवरी के महीने में देश का आम बजट पेश करते हैं। पहले आम बजट फरवरी के अंतिम दिन यानी 28 या 29 फरवरी को आता था। पिछले साल से आम बजट एक फरवरी को पेश करने की परंपरा शुरु हुई।

पहला भारतीय बजट:

भारत में बजट पेश करने की परंपरा ईस्ट-इंडिया कंपनी ने शुरू की। कंपनी ने 7 अप्रैल 1860 को बजट पेश किया था। आजादी से पहले अंग्रेजों के शासनकाल में पहला बजट तत्कालीन वित्त मंत्री जेम्स विल्सन ने 1860 में पेश किया था। विल्सन ने द इकोनोमिस्ट और स्टैन्डर्ड चार्टर्ड बैंक की स्थापना की।

देश के संविधान में "बजटशब्द नहीं:

देश के संविधान में ‘बजट’ शब्द का जिक्र ही नहीं है। संविधान में कहा गया है कि सरकार हर साल संसद के समक्ष अपना ‘वार्षिक वित्तीय विवरण’ (एनुअल फाइनेंसियल स्टेटमेंट) पेश करेगी। इसके ही लोकप्रिय भाषा में बजट कहा जाता है।

बजट से जुड़े प्रमुख तथ्य:

स्वतंत्रता के बाद देश का पहला बजट पहले वित्त मंत्री आर० के० षणमुखम शेट्टी ने 26 नवंबर 1947 को पेश किया। इसमें 15 अगस्त 1947 से लेकर 31 मार्च 1948 के दौरान साढ़े सात महीनो को शामिल किया गया। इस बजट में किसी तरह के टैक्स के प्रस्तावों को शामिल नहीं किया गया था।

आर के षणमुखम चेट्टी ने 1948-49 के बजट में पहली बार अंतिरम शब्द का प्रयोग किया तब से लघु अवधि के बजट के लिए इस शब्द का इस्तेमाल शुरु हुआ।

भारतीय गणतंत्र की स्थापना के बाद पहला बजट 28 फरवरी 1950 को जान मथाई ने पेश किया था इस बजट में योजना आयोग की स्थापना का वर्णन किया था।

भारत की नई गठित संसद के समक्ष पहला बजट सीडी देशमुख ने पेश किया था। वह आरबीआई के पहले भारतीय गवर्नर थे और 1950 से 1956 तक वित्त मंत्री रहे।

1958-59 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने बजट पेश किया उस समय वित्त मंत्रालय उनके पास था ऐसा करने वाले वे देश के पहले प्रधानमंत्री बने इंदिरा गांधी ने भी प्रधानमंत्री रहते बजट पेश किया अब तक बजट पेश करने वाली और वित्त मंत्री का पद संभालने वाली वे देश की इकलौती महिला है।

मोरारजी देसाई ने अब तक सर्वाधिक दस बार बजट पेश किया है छह बार वित्त मंत्री और चार बार उप प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होने ऐसा किया अपने जन्मदिन पर भी बजट पेश करने वाले भी वह एकमात्र मंत्री है।

देसाई के बाद प्रणब मुखर्जी, पी.चिदंबरम, यशवंत सिन्हा, वाई.बी.चौहान और सीडी देशमुख हैं, इन सभी ने सात-सात बार बजट पेश किया। मनमोहन सिंह और टीटी कृष्णमचारी ने 6-6 बार बजट पेश किया। आर.वेंकटरमन और एच.एम.पटेल ने तीन-तीन बजट पेश किए। सबसे कम बार जसवंत सिंह, वी.पी.सिंह, सी.सुब्रमण्यम, जॉन मथाई और आर.के.शानमुखम ने दो-दो बार बजट पेश किया।

बजट छपने के लिए भेजे जाने से पहले वित्त मंत्रालय में हलवा खाने की रस्म निभाई जाती है। इस रस्म के बाद बजट पेश होने तक वित्त मंत्रालय के संबधित अधिकारी किसी के संपर्क में नहीं रहते परिवार से दूर उन्हेँ वित्त मंत्रालय में ही रुकना पड़ता है।

1973-74 के बजट को ब्लैक बजट के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसमें 550 करोड़ रुपये का घाटा दिखाया गया था। वी.पी.सिंह के सरकार से इस्तीफा देने के बाद 1987 में राजीव गांधी ने बजट पेश किया था। उन्होंने बजट में कॉर्पोरेट टैक्स को परिचित कराया।

बजट में उपयोग की जाने वाली शब्दावली:
केंद्रीय बजट को 01 फरवरी 2018 में प्रस्तुत किया जायेगा।

आम बजट: बजट सरकार के लेखा-जोखे की सबसे विस्तृत रिपोर्ट होती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 में भारत के केन्द्रीय बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण के रूप में निर्दिष्ट किया गया है। इसमें एक वित्तीय वर्ष में सभी स्रोतों से सरकार को होने वाली आमदनी और हर मद पर सरकार द्वारा किये जाने वाले खर्च का ब्योरा होता है।

प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर: वह टैक्स, जिसे व्यक्तियों और कंपनियों से सीधे तौर पर वसूला जाता है। जैसे कि आयकर, निगमकर आदि। अप्रत्यक्ष कर वह कर है जो सीधे करदाताओं पर नहीं लगाया जाता है। अप्रत्यक्ष कर माल और सेवाओं पर लगाया जाता है।

जीएसटी: जीएसटी एक मूल्य वर्धित कर है जो कि विनिर्माता से लेकर उपभोक्‍ता तक वस्‍तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर एक एकल कर है। प्रत्‍येक चरण पर भुगतान किये गये इनपुट करों का लाभ मूल्‍य संवर्धन के बाद के चरण में उपलब्‍ध होगा जो प्रत्‍येक चरण में मूल्‍य संवर्धन पर जीएसटी को आवश्‍यक रूप से एक कर बना देता है। अंतिम उपभोक्‍ताओं को इस प्रकार आपूर्ति श्रृंखला में अंतिम डीलर द्वारा लगाया गया जीएसटी ही वहन करना होगा। इससे पिछले चरणों के सभी मुनाफे समाप्‍त हो जायेंगे।

चुंगी, सेंट्रल सेल्स टैक्स (सीएसटी), राज्य स्तर के सेल्स टैक्स या वैट, एंट्री टैक्स, लॉटरी टैक्स, स्टैंप ड्यूटी, टेलिकॉम लाइसेंस फी, टर्नओवर टैक्स, बिजली के इस्तेमाल या बिक्री पर लगने वाले टैक्स, सामान के ट्रांसपोटेर्शन पर लगने वाले टैक्स इत्यादि अनेकों करों के स्थान पर अब यह एक ही कर लागू किया जा रहा है।

सीमा शुल्क: सीमा शुल्क एक प्रकार का अप्रत्यक्ष कर है जो भारत में आयातित तथा भारत से निर्यातित माल पर लगाया जाता है।

राजकोषीय घाटा: सरकार की कुल राजस्व प्राप्तियों व गैर पूंजीगत प्राप्तियों (उधार व देयताओं को छोड़कर) तथा सरकार के कुल व्यय के बीच के अंतर को राजकोषीय घाटा (fiscal deficit) कहते हैं।

राजस्व घाटा: राजस्व प्राप्तियों से राजस्व व्यय की अधिकता के कारण जो घाटा होता है, उसे राजस्व घाटा कहा जाता हैI

प्राथमिक घाटा: देश के वित्तीय घाटे और ब्याज की अदायगी के अंतर को प्राथमिक घाटा कहते हैं। प्राथमिक घाटे के आँकड़े से इस बात का पता चलता है कि किसी भी सरकार के लिए ब्याज अदायगी कितनी बड़ी या छोटी समस्या है।

राजकोषीय नीति: सरकार के राजस्व संग्रह (करारोपण) तथा व्यय के समुचित नियमन द्वारा अर्थव्यवस्था को वांछित दिशा देना राजकोषीय नीति (fiscal policy) कहलाता है।

मौद्रिक नीति: जिस नीति के अनुसार किसी देश का मुद्रा प्राधिकारी मुद्रा की आपूर्ति का नियमन करता है उसे मौद्रिक नीति (Monetary policy) कहते हैं। इसका उद्देश्य राज्य का आर्थिक विकास एवं आर्थिक स्थायित्व सुनिश्चित करना होता है।

मुद्रास्फीति: मुद्रा स्फीति गणितीय आकलन पर आधारित एक अर्थशास्त्रीय अवधारणा है जिससे बाज़ार में मुद्रा का प्रसार व वस्तुओ की कीमतों में वृद्धि या कमी की गणना की जाती है।

पूंजीगत बजट: पूंजीगत बजट में पूंजी प्राप्तियां और भुगतान शामिल हैं।

राजस्व बजट: राजस्व बजट में सरकार के राजस्व प्राप्तियां और इसके व्यय शामिल होते हैं। राजस्व प्राप्ति को कर और गैर-कर राजस्व में विभाजित किया गया है।

वित्त विधेयकनए कर लगाने, कर प्रस्तावों में परिवर्तन या मौजूदा कर ढांचे को जारी रखने के लिए संसद में प्रस्तुत विधेयक को वित्त विधेयक (Finance Bill) कहते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 में वित्त विधेयक की परिभाषा दी गई है।

लेखानुदान: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 116 के अनुसार लोकसभा वोट ऑन अकाउंट नामक तात्कालिक उपाय प्रयोग में लाती है। इसके द्वारा वह सरकार को वित्त वर्ष मे भी तब तक व्यय करने की छूट देती है जब तक बजट पारित नही हो जाता है। यह सामान्यत: बजट का अंग होता है।

अतिरिक्त अनुदान: वित्तीय वर्ष बीतने के पहले यदि बजट की अपर्याप्तता दिखाते हुए अतिरिक्त खर्च की मांग संसदमें पेश की जाती है तो यह अनुपूरक अनुदान की मांग कहलाती हैं। इसके विपरीत यदि उस वित्तीय वर्ष के बीतने के बाद अतिरिक्त खर्च सामने आता है तो उसके लिए अतिरिक्त अनुदान मांगा जाता है। इस प्रकार अनुपूरक अनुदानों की मांगें वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पूर्व सदन में पेश की जाती हैं, जबकि अतिरिक्त अनुदानों की मांगें वास्तव में राशियां खर्च चुकने के बाद और उस वित्तीय वर्ष के बीत जाने के बाद पेश की जाती हैं, जिससे वे संबंधित हों।

बजट अनुमान: आने वाले वित्तीय वर्ष के लिए किसी भी मंत्रालय या योजना के लिए बजट में आवंटित धनराशि।

संशोधित अनुमान: संशोधित अनुमान   शेष व्यय, नई सेवाएं और सेवाओं के नए साधन को ध्यान में रखते हुए संभव व्यय की मध्यावधि समीक्षा है।

परिणाम बजट: सरकार द्वारा बजट में किये गये वित्तीय प्रावधानों से बेहतर परिणाम हासिल करने और जरूरत पड़ने पर वित्तीय वर्ष के बीच में ही योजनाओं में बदलाव के उद्देश्य से परिणाम बजट पेश किया जाता है।

गिलोटिनलोक सभा में बजट पर चर्चा दो चरणों में होती है। पहले चरण में चार से पांच दिनों पर पूरे बजट पर चर्चा की जाती है। इसके बाद लोक सभा कुछ दिनों के लिए स्थगित कर दी जाती है। अब संसद की स्थायी समितियां अलग-अलग विभागों की अनुदान की मांगों पर विचार करती हैं। समितियों को एक निश्चित समय में अपनी राय लोकसभा को देनी होती है और इनकी राय मानना अनिवार्य नहीं होता है। संसद की स्थायी समितियों द्वारा दिए विचारों पर सदन में मतदान होता है। मतदान के लिए कुछ दिनों का समय दिया जाता है। दिए गए समय के आखिरी दिन लोक सभा अध्यक्ष सभी बकाया मांगों को सभा में मतदान के लिए प्रस्तुत करता है। इसे गिलोटिन के नाम से जाता जाता है।

कटौती-प्रस्ताव: अनुदान माँगों पर चर्चा के समय सदस्यों द्वारा मूल प्रस्ताव के सहायक प्रस्ताव के रूप में कटौती प्रस्ताव पेश किया जाता है. कटौती प्रस्ताव (Cut motion) तीन प्रकार के होते हैं: नीति आधारित कटौती प्रस्ताव, मितव्ययता कटौती प्रस्ताव, सांकेतिक कटौती प्रस्ताव।

प्रत्यनुदान और अपवादानुदान: किसी राष्ट्रीय आपात (emergency period) के कारण सरकार को धन की अप्रत्याशित माँग को पूरा करने के लिए निधियों की आवश्यकता हो सकती है जिसके पूर्व अनुदान देना संभव न हो, ऐसी स्थिति में सदन बिना ब्यौरे दिए प्रत्यनुदान के माध्यम से एकमुश्त धनराशि दे सकता है।

भारत की संचित निधि: सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, बाजार से लिए गए ऋण और स्वीकृत ऋणों पर प्राप्त ब्याज संचित निधि (Consolidated Fund Of India) में जमा होते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 266 के तहत स्थापित है यह ऐसी निधि है जिस में समस्त एकत्र कर/राजस्व जमा, लिये गये ऋण जमा किये जाते है यह भारत की सर्वाधिक बडी निधि है जो कि संसद के अधीन रखी गयी है कोई भी धन इसमे बिना संसद की पूर्व स्वीकृति के निकाला/जमा या भारित नहीं किया जा सकता है अनु 266 प्रत्येक राज्य की समेकित निधि का वर्णन भी करता है।

भारत की आकस्मिकता निधि: भारत की आकस्मिकता निधि (Contingency fund of India). अनुच्छेद 267 के अंतर्गत संसद द्वारा स्थापित निधि, जिसमें संसद से पारित कानूनों द्वारा समय-समय पर धन जमा किया जाता है। यह निधि राष्ट्रपति के नियंत्रण में होती है तथा उस निधि से धन निकालने के लिए संसद की अनुमति अनिवार्य है।

लोक लेखा (पब्लिक अकाउंट): भारत के संविधान के अनुच्छेद 266 (1) के प्रावधानों के तहत, पब्लिक अकाउंट उन सभी फंड प्रवाह के संबंध में उपयोग किया जाता है जहां सरकार बैंकर के रूप में कार्य कर रही है।

कॉर्पोरेट कर: ये वो कर हैं जो निगम या कंपनियां चुकाती हैं।

न्यूनतम वैकल्पिक कर: ये वो कर है जो किसी कंपनी को देना ही होता है, चाहे यह कर 0 ही क्यों न हो।

विनिवेश: सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों अथवा उपक्रमों में सरकारी हिस्‍सेदारी को बेचने की प्रक्रिया विनिवेश कहलाती है। दरअसल इस प्रक्रिया के तहत सरकार घाटे में चल रहे सार्वजनिक क्षेत्र की उन कंपनियों या उपक्रमों की कुछ हिस्‍सेदारी को शेयर या बांड के रूप में बेचती है। इस प्रक्रिया के तहत मिलने वाले धन का उपयोग सरकार या तो उस कंपनी को बेहतर बनाने में करती है या किसी अन्‍य दूसरी योजनाओं में इसको लगाती है।

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