आज भारत दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था है। सरकार ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कई ढांचागत सुधार शुरू किए हैं। इनमें वस्तु और सेवा कर यानी जीएसटी के माध्यम से एकीकृत बाजार का सृजन, दिवालिया संहिता (आईबीसी) लागू करना, 433 स्कीमों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश व्यवस्था को खोलना और कारोबारी सहूलियत देना प्रमुख हैं। अर्थव्यवस्था में वृद्धि की दर बने रहने की संभावना है, किंतु चुनौती यह है कि इससे भी अधिक वृद्धि दर तीन दशकों तक कायम रहे ताकि युवा भारत के लिए अधिक रोजगार सृजित हो सकें और देश में खुशहाली आए। हमारी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, पर मानव विकास सूचकांक की दृष्टि से मोटे तौर पर ठहराव बना हुआ था। स्वास्थ्य, पोषण और शैक्षिक नतीजों की दृष्टि से सुधार तो हुआ है, किंतु बदलाव की दर हमारी अपेक्षा से काफी कम है। यह आवश्यक है कि हम अपनी सामाजिक पूंजी में निवेश पर ध्यान दें और उसे बढ़ाएं। सामाजिक क्षेत्र में बड़े परिवर्तन की तत्काल आवश्यकता है। सरकार में सबसे निचले स्तर पर भी ढांचे को बदलने, विभिन्न मंत्रालयों की स्कीमों को समेकित करने, वास्तविक प्रगति को मापने और समुदायों के विकास में उन्हें शामिल करने के प्रयास किए गए हैं। इन कदमों से आने वाले दशकों में भी भारतीय नागरिकों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
अगर हमारा कार्यबल कुपोषित रहेगा तो देश सशक्त नहीं बनेगा। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे यानी एनएफएचएस-4 के अनुसार करीब हर तीन में से एक बच्चे का विकास अवरुद्ध है और हर दूसरी महिला रक्ताल्पता की शिकार है। कुपोषण के कई कारकों को ध्यान में रखते हुए हाल में पोषण अभियान शुरू किया गया है। इसमें स्थानीय समुदायों की भागीदारी से एक जन आंदोलन खड़ा करने पर जोर है। इसके अलावा प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए एक सशर्त नकद अंतरण स्कीम भी है। मिशन इंद्रधनुष से यह सुनिश्चित किया गया है कि 201 जिलों में पूर्ण टीकाकरण की दर में 2013-14 के 61 प्रतिशत की तुलना में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अधिक कुपोषण वाले जिलों में रोटा वायरस और अन्य टीकों से पांच साल से कम उम्र के बच्चों में अतिसार और न्यूमोनिया के मामलों की रोकथाम होने की संभावना है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत साफ-सफाई पर लगातार बल देने से ग्रामीण भारत में स्वच्छता 39 प्रतिशत से बढ़कर 84 फीसद हुई है।
इसके स्वास्थ्यगत और साथ ही आर्थिक लाभ दिखने शुरू हो गए हैं। इससे चिकित्सा लागत घटी है, समय की बचत हुई है और जीवन की रक्षा भी हुई है। 2018-19 का बजट इस मायने में अभूतपूर्व रहा कि इसमें स्वास्थ्य क्षेत्र पर बल देने के साथ ऐतिहासिक आयुष्मान भारत योजना शुरू की गई। आयुष्मान भारत के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण मिशन (एनएचपीएम) अब तक की सबसे बड़ी और पूरी तरह सरकार द्वारा वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा योजना है। अनुमान है कि इससे 10.74 करोड़ परिवारों यानी लगभग पचास करोड़ लोगों को पांच लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कवर मिलेगा। इसके तहत लोग 1364 रोगों का नकदी रहित उपचार करा सकेंगे। ऐसी महत्वाकांक्षी योजना के अमल में चुनौतियां काफी होती हैं। एनएचपीएम में हमारे नागरिकों को अब तक मिल रही स्वास्थ्य सेवा में जबरदस्त बदलाव लाने की क्षमता है। सरकार को इसकी चिंता है कि एक सुव्यवस्थित स्वास्थ्य प्रणाली में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को वरीयता मिले। सरकार उप-स्वास्थ्य केंद्रों/प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के उन्नयन के जरिये ऐसे 1,50,000 समुचित संसाधन वाले स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों की स्थापना के प्रति समर्पित है जहां व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा मिल सके, जिनमें मुफ्त औषधि और जांच सुविधा शामिल है।
इन केंद्रों में सभी लोगों का स्वास्थ्य ब्योरा रखा जाएगा। इससे रोग की परिस्थितियों का जल्दी पता लगाया जाना सुनिश्चित हो सकेगा। स्वास्थ्य क्षेत्र में कुशल कर्मियों की कमी भी सरकार की चिंता का विषय है। भारतीय चिकित्सा परिषद के स्थान पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक लाया जा रहा है। 2022 तक स्वास्थ्य क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र में 15 लाख रोजगार सृजित होने का अनुमान है। सर्व शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के समग्र शिक्षा अभियान के रूप में विलय से अब हम विद्यालयों को प्राथमिक, उच्च-प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक खंडों में वर्गीकरण के बजाय एक संपूर्ण इकाई के रूप में देख सकते हैं। इससे विद्यालयों का बेहतर प्रबंधन और शिक्षण संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित होगा। शिक्षा के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के माध्यम से ‘उन्नयन बांका’ पहल के लिए बांका, बिहार के जिला प्रशासन को प्रधानमंत्री लोक प्रशासन पुरस्कार प्रदान किया गया है। यह एक मल्टी-प्लेटफार्म मॉडल उपलब्ध कराती है जहां विद्यार्थियों को टीवी, लैपटॉप आदि माध्यम से आधुनिक सुविधा मिलती है। यह ‘मेरा मोबाइल मेरा विद्यालय’ के माध्यम से मोबाइल फोन पर कभी भी और कहीं भी शिक्षा-प्राप्ति के मॉड्यूल्स उपलब्ध कराती है। जिलों के विकास में विषमता को स्वीकारते हुए सरकार ने विकास के मामले में पिछड़े जिलों की विकास संबंधी जरूरतों का समाधान किया है। इसके तहत 28 राज्यों के उन 115 जिलों का सुधार करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है जहां विकास के विभिन्न मानदंडों के हिसाब से सबसे कम प्रगति देखी गई है। इनमें भारत की 20 प्रतिशत से अधिक आबादी रहती है। इसके तहत शिक्षा, स्वास्थ्य-पोषण, वित्तीय समावेशन, कृषि, कौशल विकास और बुनियादी अवसंरचना से संबंधित 49 संकेतकों में सुधार करने पर जोर दिया जा रहा है। यह कार्यक्रम तत्क्षण डेटा और निरंतर निगरानी पर आधारित है। यह विभिन्न संस्थाओं और सिविल सोसायटी के साथ भागीदारी में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एक सहयोगी परियोजना है।
उचित समावेशी विकास को बढ़ावा देने और मानव विकास संकेतकों में सुधार की गति बढ़ाने हेतु संसाधनों की प्राथमिकता का निर्धारण करने और अड़चनों को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। इसी तरह ग्राम स्वराज अभियान के माध्यम से कल्याणकारी स्कीमों का कार्यान्वयन किया जा रहा है। इसका लक्ष्य प्रमुख कल्याण कार्यक्रमों को देश के पिछड़े क्षेत्रों तक पहुंचाना है। शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण पर सरकार के प्रोत्साहन को देखते हुए यह माना जा रहा है कि हम मानव विकास सूचकांक क्षेत्र में बड़ा प्रभाव देख सकेंगे। कुछ प्रभाव तो दिखने शुरू भी हो गए हैं। इनका वास्तविक लाभ किसी भी चुनाव चक्र से आगे तक जाएगा। उम्मीद है कि ये सभी परिवर्तन एक स्थाई विशेषता बनेंगे।
अमिताभ कांत
(लेखक नीति आयोग के सीईओ हैं)