Tuesday, 10 September 2019

जैव विविधता (Bio Diversity) : घटती प्रजातियाँ, बढ़ती दुश्वारियाँ

पृथ्वी ग्रह की असीम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष गतिविधियों को समझने में हम पूरी तरह से फेल हो चुके हैं। हमने अपनी केन्द्रीय भूमिका इसी रूप में निभाई कि किस तरह से पृथ्वी पर मनुष्य बेहतर जीवनयापन कर सकता है और ऐसा करते हुए हम अन्य जीवों व प्राणियों की भूमिका को आंकने में आज तक असफल रहे हैं। हम ये नहीं समझ सके कि पृथ्वी का एक पारिस्थितिकी तंत्र है, जिसमें हर प्राणी की व पेड़-पौधों की अपनी एक भूमिका है।

हर वृक्ष अपने जीवन में जो भी प्रकृति से लेता है, उसके समान वह पारिस्थितिकी तंत्र को वापिस भी कर देता है और यही बात अन्य जीवों के लिये भी फिट बैठती है। उदाहरण के लिये शाकाहारी जीव अगर पेड़, पत्ती, बीज, फलों का सेवन करते हैं तो उनके बदले समान रूप से बीजों का वितरण मल त्याग कर अपने भोजन की वापसी के साथ नई चारागाह भी तैयार करते हैं। यही नहीं बल्कि खुद मांसाहारी जीवों का भोजन भी बन जाते हैं और ये इसलिये होता है ताकि कोई एक प्रजाति अत्यधिक संख्या में बढ़कर पारिस्थितिकी तंत्र पर बोझ न बने। इसीलिये शास्त्रों में ‘जीवष्य भोजनम‍् च जीवष्य’ को इसी तरह चरितार्थ किया जाता है। मगर इस श्रेणी में मनुष्य नहीं आता और यही कारण है कि इसकी जनसंख्या पर कोई नियंत्रण नहीं हो सका।

अब इस तथ्य को ऐसे भी समझा जा सकता है कि 1970 से आज तक करीब 49 सालों में आधे से ज्यादा वन्यजीव समाप्त हो चुके हैं। यह लगभग 52 फीसदी है। इनमें स्तनधारी पक्षी, सरीसृप, उभयचारी व मछलियां हैं। अब ये आंकड़ा हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह अध्ययन डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ. व जूलोजिकल सोसायटी ऑफ लंदन ने किया, जो 10,000 विभिन्न आबादी वाली 3000 प्रजातियों के आधार पर था।

दूसरी तरफ वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया में पौधों की प्रजातियों के पांचवें हिस्से पर लुप्त होने का खतरा बना हुआ है और यह अध्ययन लंदन के रॉयल बोटेनिकल गार्डन के वैज्ञानिकों ने किया है। इसके अनुसार दुनिया की लगभग 3 लाख 80 हजार पादप प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं और इसी तरह आई.यू.सी.एन. संस्था का कहना है कि दुनिया के एक- तिहाई जीवों पर भी लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है और ये लगभग 17 हजार 291 जीवों की प्रजातियां हैं। अपने देश में तो हालात ज्यादा गंभीर हैं। वन संपदा की दृष्टि से पादप विविधता में भारत का विश्व में दसवां और एशिया में चौथा स्थान है। यहां पौधों की लगभग 1336 प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं और इनमें से 20 प्रजातियां 60 से 100 वर्षों के दौरान दिखाई नहीं पड़ी हैं। करीब 15 हजार फूलदार पौधों की प्रजातियां जो कि दुनिया की 6 फीसदी पादप प्रजाति का हिस्सा हैं, वे एक या दो कारणों से सहज महसूस नहीं कर रही हैं। मतलब दुनिया की एक-चौथाई प्रजातियां खतरे में मानी जा सकती हैं। अब ये सब क्यों हो रहा है, इसमें ज्यादा बहस की कोई गुंजाइश नहीं है। इसे ऐसे भी समझिये कि दुनिया में मनुष्य की बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं के लिये वनों का कटान इनकी बढ़त से कई गुना ज्यादा है। समुद्र में उतनी मछलियां पनप नहीं पातीं, जितनी कि प्रतिदिन पकड़ ली जाती हैं। जलाशयों व नदियों से उतना पानी हटा लिया जाता है, जितना कि वर्षा जल संचित नहीं कर सकेगी। जंगल व समुद्र उतनी कार्बन डाई आॅक्साइड व तापक्रम को नियंत्रण नहीं कर सकते, जितना कि मनुष्य की गतिविधियां पैदा करती हैं।

सीधी-सी बात है कि एक प्रजाति विशेष मनुष्य की बढ़ती जनसंख्या और उसके लिये सुविधाएं जुटाने का काम आज अन्य जीवों व वनों के लिये घातक बन चुका हैं। ये कुछ हद तक पृथ्वी की अलौकिक क्षमताओं के कारण सीमा नहीं तोड़ पाया था पर आज यह तंत्र टूटने के प्रति संवेदनशील हो चुका है। इन सब बातों की गंभीरता को समझते हुए 70 के दशक के आसपास में जैव विविधता संरक्षण पर गंभीर कदम उठाये गये। एक बड़े कदम के रूप में 120 देशों में 669 बायो स्फीयर रिजर्व खड़े किये गये और ये लगभग सभी देशों की जिम्मेदारी समझी गयी। इनमें अफ्रीका के 28 देश, अरब राज्यों के 11, एशिया के 24, यूरोप, उत्तरी अमेरिका के 36 व लैटिन अमेरिका के 21 देशों ने ये कदम उठाया। इसको कोर, बफर व ट्रांजिसन एरिया के रूप में विभाजित करते हुए संरक्षण प्रदान किया गया और इसी तरह 100 देशों ने नेशनल पार्क भी खड़े किये।

अपने देश की भी इसमें भूमिका बराबर रही है। इस बड़े कदम के बाद भी अगर यह मान लिया जाये कि हमने अन्य प्रजातियों को संरक्षण प्रदान कर दिया है तो ये हमारी भूल ही होगी क्योंकि ज्यादातर इन बायो स्फीयर रिजर्व व नेशनल पार्कों से कई तरह के विवाद जुड़े हुए हैं और यही नहीं इनके खस्तेहाल की भी चर्चाएं होती रहती हैं। वनों का कटान, जीवों का दोहन, वे चाहे बाघ हों या गैंडा, हाथी, ये सब इतनी सुरक्षा के बाद भी शिकारियों की भेंट चढ़ ही रहे हैं। अवैध वन कटान व जड़ी बूटियों की बड़ी चोरी कहीं भी छुपी हुई नहीं है। ऐसे में सामान्य नहीं रहा जा सकता क्योंकि पृथ्वी का पारिस्थितिकी तंत्र सामूहिक योगदान व उपयोग के लिये बना हुआ है। प्राणी विशेष की भूमिका अहम नहीं हो सकती। इसलिये यह तंत्र आज संवेदनशील हो चुका है जो विभिन्न रूपों से वो चाहे बवंडर हो या बाढ़, हमारे बीच में है।

अब जैव विविधता दिवस को जीवन दिवस के रूप में भी मनाया जाना चाहिये क्योंकि इस तंत्र में हर जीव की अपनी एक भूमिका है और पारस्परिक सहयोग व योगदान से ही हम एक-दूसरे के लिये बेहतर जीवन संजो सकते हैं। किसी भी प्रजाति का खत्म होना हमारे जीवन के एक दिन के खत्म होने के बराबर है। जैव विविधता को समझने व समझाने के नये रास्ते तैयार करने होंगे वरना आज मात्र एक औपचारिकता का हिस्सा बन चुका है। इसे व्यवहार में लाना आज की सबसे बड़ी चुनौती है वरना हर नये जैव विविधता दिवस के अवसर पर हम अपने जीवन का एक दिन खो चुके होंगे।

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