Wednesday 2 August 2017

जलवायु परिवर्तन (Global Warming) की वजह से बढ़ती गर्मी और उमस का भारतीय उपमहाद्वीप (Indian Subcontinent) पर संभावित असर

ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बढ़ती गर्मी और उमस की वजह से दक्षिण एशिया, जहाँ दुनिया की कुल आबादी के बीस फ़ीसदी लोग रहते हैं, के लाखों लोग पर गंभीर ख़तरा मंडरा रहा है।

अगर ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने वाले उत्सर्जन में कमी नहीं आई तो साल 2100 तक भारतीय उपमहाद्वीप की 30 फ़ीसदी आबादी ख़तरनाक उमस भरी गर्म हवाओं के घेरे में आ सकती है।

दुनिया में ज्यादातर आधिकारिक मौसम केंद्र दो तरह के थर्मामीटर के जरिए तापमान नापते हैं।
इनमें पहला है 'ड्राइ बल्ब' थर्मामीटर जिसके जरिए हवा का तापमान रिकॉर्ड होता है।
दूसरा है 'वेट बल्ब' थर्मामीटर जिसमें हवा की नमी को नापा जाता है और इसमें आमतौर पर साफ हवा के तापमान से कम तापमान रिकॉर्ड होता है। मनुष्यों के लिए 'वेट बल्ब' के नतीजे खासे अहम हैं।
हमारे शरीर के अंदर सामान्य तापमान 37 सेंटीग्रेट होता है। त्वचा का तापमान आमतौर पर 35 सेंटीग्रेट रहता है। पसीना निकलने से जिस्म तापमान के इस अंतर को पाट लेता है।
अगर हमारे वातावरण में वेट बल्ब थर्मामीटर का तापमान 35 डिग्री सेंटीग्रेट या उससे ज्यादा है तो गर्मी घटाने की शरीर की क्षमता तेज़ी से कम होती है और सबसे तंदुरुस्त व्यक्ति की भी करीब छह घंटे में मौत हो सकती है।
एक इंसान के बचे रहने के लिए 35 डिग्री सेंटीग्रेट ऊपरी सीमा मानी जाती है। 31 डिग्री सेंटीग्रेट का नम तापमान भी ज्यादातर लोगों के लिए बेहद ख़तरनाक माना जाता है।
धरती पर वेट बल्ब थर्मामीटर में रिकॉर्ड किया गया तापमान शायद ही कभी 31 डिग्री सेंटीग्रेट से ऊपर गया है। हालांकि साल 2015 में ईरान में मौसम विज्ञानियों ने वेट बल्ब के तापमान को 35 सेंटीग्रेट के करीब देखा था। उसी साल गर्मियों में हीट वेव की वजह से भारत और पाकिस्तान में 35 सौ लोगों की मौत हुई थी।

हाल ही में वेट बल्ब के तापमान के इंसानों पर संभावित जानलेवा असर पर एक अध्ययन हुआ है। अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं ने उच्च दर्जे के जलवायु मॉडल को अपने पर्यवेक्षणों के मुकाबले परखा और तब निष्कर्ष दिया। उन्होंने दो अलग-अलग जयवायु परिवर्तन की स्थितियों के लिहाज से इस शताब्दी के आखिर के लिए वेट बल्ब तापमान का अनुमान लगाया।
शोध के मुताबिक अगर उत्सर्जन की दर ज्यादा रही तो वेट बल्ब तापमान "गंगा नदी घाटी, उत्तर पूर्व भारत, बांग्लादेश, चीन के पूर्वी तट, उत्तरी श्रीलंका और पाकिस्तान की सिंधु घाटी समेत दक्षिण एशिया के ज्यादातर हिस्से में" 35 डिग्री सेंटीग्रेट के करीब पहुंच जाएगा।
वैज्ञानिकों के मुताबिक करीब तीस फीसदी आबादी वेट बल्ब के सालाना अधिकतम तापमान 31 डिग्री सेंटीग्रट या उससे ज्यादा का सामना करेगी। फिलहाल इस स्तर के खतरे का सामना करने वाले लोगों की संख्या न के बराबर है।
सिंधु और गंगा नदियों की घाटियों में पानी है। खेती भी होती है और वहीं आबादी भी तेज़ी से बढ़ी है। जिन जगहों पर अधिकतम तापमान है वहाँ अपेक्षाकृत गरीब लोग रहते हैं जिन्हें खेती का काम करना होता है और वो उसी जगह हैं जहां खतरा सबसे ज्यादा है।
अगर पेरिस जलवायु समझौते के मुताबिक वैश्विक तापमान को दो डिग्री से थोड़ा ऊपर तक सीमित रखा जाए 31 सेंटीग्रेट से ज्यादा की उमस भरी गर्मी झेलने वाली आबादी घटकर दो फीसदी तक आ सकती है।
अगर कार्बन उत्सर्जन रोकने के लिए कम उपाय किए गए तो 31 सेंटीग्रेट और उससे ज्यादा की हीट वेव का असर कहीं ज्यादा बढ़ सकता है।

जलवायु परिवर्तन सिर्फ एक कोरी कल्पना भर नहीं है, लेकिन इसे रोका जा सकता है।
अगर कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगाने के लिए उपाय नहीं किए गए तो नुकसानदेह स्थितियां सामने आ सकती हैं।
या तो हम कार्बन उत्सर्जन को कम करने का फैसला करें अन्यथा हमें दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले क्षेत्र में बेहद खतरनाक स्थितियों का सामना करना होगा।
(बीबीसी मेंं छपे लेख पर आधारित)

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