कुपोषित बच्चों की संख्या के मामले में भारत विश्व में पहले स्थान पर है। एसोचैम के एक अध्ययन में यह सामने आया है कि विश्व के कुल कुपोषित बच्चों की संख्या का पचास फीसद केवल भारत में है। वर्ष 2005-15 के दौरान शिशु व पांच साल से नीचे के बच्चों की मृत्यु दर में कमी देखने को मिली है, लेकिन कुपोषण भारत की तस्वीर को भयावह करके दिखा रहा है। 2015 के आखिर तक भारत के 40 फीसद बच्चे कुपोषित थे, जबकि शहरों में अधिपोषण की समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट का हवाला देकर बताया गया है कि मधुमेह के रोगियों के मामले में भारत को विश्व की राजधानी माना जा सकता है। यहां छह करोड़ 92 लाख मरीज इस रोग के हैं। रिपोर्ट कहती है कि खानपान की आदतों की वजह से कुपोषण व अधिपोषण की समस्या सामने आ रही है।
रिपोर्ट के प्रमुख तथ्य;
1. पांच साल से कम उम्र के 37% बच्चों के वजन कम हैं जबकि 39% बच्चे अविकसित हैं, 21% बच्चों का वजन उनकी ऊंचाई के हिसाब से कम है और 8% बच्चे तीव्र कुपोषित हैं।
2. शहरी भारत (29%) की तुलना में ग्रामीण भारत (38%) में कम वजन वाले बच्चों की संख्या अधिक थी। 6-23 महीने की आयु के बच्चों में पोषण के लिए पर्याप्त आहार केवल 10% बच्चों को ही प्राप्त हो पा रहा है।
3. पांच साल से कम उम्र के कम वजन वाले बच्चों की संख्या झारखण्ड में सर्वाधिक (42%) थी जबकि उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक अविकसित बच्चे पाए गए।
4. भारत गैर-पौष्टिक एवं गैर-संतुलित भोजन या तो अल्पपोषण, अतिपोषण या सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के रूप में ग्रहण कर रहा है।
रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि इससे उबरना है तो नीतियां बनाकर सामाजिक भेदभाव को कम करना होगा। सरकार को यह भी देखना होगा कि स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं भी सभी को एक समान रूप से मिलें।
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