भारतीय कानून आयोग ने केंद्र सरकार को "उत्पीड़न के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन" को मंजूरी देने की सिफारिश की है और साथ ही उत्पीड़न के विरुद्ध एक ऐसा कानून बनाने का भी निर्देश दिया है जिसमें राज्य के एजेंटों द्वारा नागरिकों पर किये जाने वाले किसी भी अत्याचार के विरुद्ध राज्य को सीधे जिम्मेदार बनाया जाएगा।राज्य अपने अधिकारियों या एजेंटों के कार्यों के लिए किसी भी प्रतिरक्षा (इम्युनिटी) का दावा नहीं करेगा। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बीएस चौहान के नेतृत्व में आयोग की यह सिफारिश अब सरकार पर यातना/उत्पीड़न को एक अलग अपराध के रूप में सूचीबद्ध करने हेतु दवाब डालेगी।अभी तक, न तो भारतीय दंड संहिता और न ही आपराधिक प्रक्रिया संहिता विशेष रूप से या व्यापक रूप से हिरासत में दी जाने वाली यातनाओं को संबोधित करती है।
पृष्ठभूमि:
‘उत्पीड़न और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक उपचार अथवा सज़ा के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन’ पर हस्ताक्षर करने के दो दशकों बाद भी भारत ने अभी तक इसका अनुमोदन नहीं किया है।सर्वोच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए हाल ही में टिप्पणी की है कि इस कन्वेंशन का अनुमोदन करना भारत के लिये हितकारी साबित होगा। याचिका में इस कन्वेंशन को भारत के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण बताते हुए कहा गया है कि 1997 के इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने वाले 161 देशों में से केवल 9 देशों ने इसका अनुमोदन नहीं किया है जिनमें से भारत भी एक है।
स्रोत-द हिन्दू
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