Monday, 6 November 2017

अंटार्कटिक क्षेत्र में हर साल बनने वाले ओजोन छेद (Hole in the Ozone Lawyer)

अद्दतन  तथ्य-

नासा और नेशनल ओसनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के वैज्ञानिकों ने बताया है कि गर्म वायु के कारण हर साल सितंबर में किए जाने वाली जांच में अंटार्कटिक क्षेत्र के ऊपर ओजोन परत का छेद 1988 के बाद सबसे छोटा पा गया है।

इस साल ओजोन छेद में इस परिवर्तन के पीछे वैज्ञानिक अंटार्कटिक भंवर की अस्थिरता व ज्यादा गर्मी, जोकि अंटार्कटिक क्षेत्र के वायुमंडल में दक्षिणावर्त बनने वाले समतापमंडलीय निम्न दबाव के कारण उत्पन्न होती है, को मानते हैं।

हर वर्ष 16 सितम्बर को ओजोन दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि इस दिन ओजोन परत से जुड़े तथ्यों के बारे में जागरूकता बनाई जा सके।

ओजोन छेद का पता 1985 में लगाया गया था। दक्षिणी गोलार्ध में सिंतबर से दिसंबर के दौरान शीत ऋतु के बाद सूर्य की किरणों की वापसी से जो उत्प्रेरक प्रभाव पड़ता है, उससे अंटार्कटिक क्षेत्र में ओजोन छेद का निर्माण होता है।

धरती से औसतन 25 मील ऊपर समताप मंडल (Stratosphere) में ओजोन परत है, जोकि सनस्क्रीन की तरह काम करती है और पृथ्वी को सूर्य की अल्ट्रावायोलेट किरणों के हानिकारक प्रभावों से बचाती है। अल्ट्रावायोलेट किरणों के विकरण से लोगों को कैंसर, मोतियाबिंद जैसे रोगों का खतरा रहता है. साथ ही इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी नष्ट हो सकती है।

ओजोन परत क्षय के कारण-

ओजोन परत के बढ़ते क्षय का मुख्य कारण मानवीय क्रियाएं हैं। मानवीय क्रियाकलापों ने अज्ञानता के चलते वायमंडल में कुछ ऐसी गैसों की मात्रा को बढा दिया है जो धरती पर जीवन रक्षा करने वाली ओजोन परत को नष्ट कर रही हैं। वैज्ञानिको ने ओजोन परत से जुड़े एक विश्लेषण में यह पाया है कि क्लोरो फ्लोरो कार्बन ओजोन परत में होने वाले विघटन के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। इसके अलावा हैलोजन, मिथाइल क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोरिडे आदि रसायन पदार्थ भी ओजोन को नष्ट करने में सक्षम हैं। इन रसायन पत्रथो को "ओजोन क्षरण पदार्थ" कहा गया है। इनका उपयोग हम मुख्यत: अपनी दैनिक सुख सुविधाओ में करते हैं जैसे एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, फोम, रंग, प्लास्टिक इत्यादि।

ओजोन परत संरक्षण हेतु  प्रयास-

ओजोन परत के बढ़ते क्षय को ध्यान में रखते हुए कुछ देशों द्वारा पिछले तीन दशकों में महत्वपूर्ण कदम उठाये गए हैं। ओजोन परत के संरक्षण हेतु विभिन्न देशों द्वारा विश्व स्तर पर किये गए कुछ महत्वपूर्ण प्रयास इस प्रकार हैं-

ओजोन-क्षय विषयों से निबटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समझौते हेतु अंतर-सरकारी बातचीत 1981 में प्रारंभ हुई।

मार्च, 1985 में ओजोन परत के बचाव के लिए वियना में एक विश्वस्तरीय सम्मेलन हुआ, जिसमें ओजोन संरक्षण से संबंधित अनुसंधान पर अंतर-सरकारी सहयोग, ओजोन परत के सुव्यवस्थित तरीके से निरीक्षण, सीएफसी उत्पादन की निगरानी और सूचनाओं के आदान-प्रदान जैसे मुद्दों पर गंभीरता से वार्ता की गयी। सम्मेलन के अनुसार मानव स्वास्थ्य और ओजोन परत में परिवर्तन करने वाली मानवीय गतिविधियों के विरूद्ध वातावरण बनाने जैसे आम उपायों को अपनाने पर देशों ने प्रतिबद्धता व्यक्त की।

1987 में सयुक्त राष्ट्र संघ ने में ओजोन परत में हुए छेदों से उत्पन्न चिंता के निवारण हेतु कनाडा के मांट्रियाल शहर में 33 देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसे “मांट्रियाल प्रोटोकाल” कहा जाता है। इस सम्मेलन में यह तय किया गया कि ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थ जैसे क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सी.एफ.सी.) के उत्पादन एवं उपयोग को सीमित किया जाए। भारत ने भी इस प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर किए।

1990 में मांट्रियल संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने 2000 तक सी.ऍफ़.सी. और टेट्रा क्लोराइड जैसी गैसों के प्रयोग पर भी पूरी तरह से बंद करने की शुरुआत की।

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