Saturday 30 December 2017

बहुमंजिला इमारतों और व्यापारिक परिसरों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी

विडंबना ही है कि इस देश में हर बड़े हादसे के बाद चिंताओं में तो खूब गंभीरता दिखती है, लेकिन सिस्टम इन चिंताओं को शायद ही कभी गंभीरता से लेता हो। नतीजा, हादसों का सिलसिला जारी रहता है।

मुंबई हादसा भी सिस्टम की ऐसी ही उदासीनता का कुफल है। मुंबई के कमला मिल्स परिसर अग्निकांड ने बहुमंजिला इमारतों और व्यापारिक परिसरों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी पर फिर से सवाल उठाए हैं। वरना कोई कारण नहीं था कि एक ऐसा रेस्तरां शहर के प्रमुख इलाके में चलता रहता, जिसमें सुरक्षा के न्यूनतम मानकों का भी पालन नहीं किया गया था। वहां आग बुझाने के उपकरण तो नहीं ही थे, आपातकालीन द्वार पर सामान का ढेर था, जिसके कारण उसका इस्तेमाल न हो सका। हादसे के वक्त वहां पार्टी चल रही थी और मृतकों में सभी युवा हैं। यह तथ्य कम खौफनाक नहीं है कि ज्यादातर मौतें जलने से नहीं, दम घुटने से हुईं, जो यह बताता है कि मौका मिलता और वे निकल पाते, तो आज जीवित होते। इस तथ्य से होटल प्रबंधन की लापरवाही खुद-ब-खुद तय हो जाती है, लेकिन इस पर तब तक काबू नहीं हो सकेगा, जब तक कि त्वरित व सख्त दंड की नजीर नहीं पेश की जाती।

ऊंची-ऊंची इमारतें और टावर जब तरक्की का पैमाना बनते जा रहे हों; छोटी पड़ती धरती पर आकाश की ओर विस्तार ही विकल्प हो, तो रखरखाव और सुरक्षा मानक भी उतने ही सख्त होने चाहिए। मानकों में सख्ती ही नहीं, इन्हें सुनिश्चित करने की व्यवस्थाएं भी बहुत दुरुस्त और चुस्त होनी चाहिए। मुंबई हादसे के मामले में ऐसा कुछ भी नहीं था। रेस्तरां का हाल बता रहा है कि वहां शायद ही कभी मानकों की जांच हुई हो। ऐसा होता, तो आग बुझाने वाले यंत्र मौके पर जरूर मिलते। वैसे इस देश में गारंटी से नहीं कह सकते कि आग बुझाने वाले यंत्र मौजूद हों, तो वे अनिवार्यत: काम भी करेंगे। ज्यादातर बहुमंजिली इमारतों में तो स्टाफ को ही नहीं पता होता कि आपात स्थितियों में पानी कहां से लेना है और लोगों को किस रास्ते सुरक्षित निकाला जा सकता है?
विशेषज्ञ और सामान्य समझ, दोनों यही कहते हैं कि इमारतें जितनी ऊंची और विस्तारित होंगी, सुरक्षा मानक उतने ही संवेदनशील होंगे, लेकिन सामान्य ज्ञान यह भी बताता है कि हमारे ज्यादातर शहरों के पास आपात स्थितियों में इमारत की ऊपरी मंजिलों तक पहुंचने के साधन नहीं हैं। अग्निशमन वाहन कई बार इसलिए लाचार होते दिखे कि उनके जाने की जगह खुली पार्किंग में तब्दील हो चुकी थी और आग तक पहुंचने से पहले इन गाड़ियों को हटाना बड़ा काम था। जाहिर है, यह सब प्रशासनिक तंत्र के सहयोग के बिना संभव नहीं है। समझना यह भी होगा कि आकाश की ओर विस्तार का यह सिद्धांत अपनाने में ही तो कहीं चूक नहीं हो रही। यह सुरक्षा के प्रति हमारे संवेदनशील न होने या सुरक्षा की संस्कृति विकसित न होने का मामला भी है।

मुंबई के निगम पार्षदों को यह पता था कि वहां बहुत कुछ नियम विरुद्ध है, सुरक्षा मानकों का पालन नहीं हो रहा, लेकिन उन्होंने महज एक चिट्ठी लिखकर अपनी जवाबदेही पूरी कर ली। क्या उनसे नहीं पूछा जाना चाहिए कि लापरवाही के इस मामले में निर्वाचित जन-प्रतिनिधि होने के कारण उन्हें भी क्यों न जिम्मेदार ठहराया जाए? यह दिल्ली के उपहार सिनेमा हादसे को याद करने का वक्त है, जिसमें पर्याप्त आपात-निकासी का न होना दम घुटने से मौतों का कारण बना था। उस मामले में फैसला आने में 20 साल लग गए। कमला मिल्स हादसे के दोषियों को सजा मिलने में इतना वक्त नहीं लगना चाहिए। त्वरित अदालत में कठोर दंड सुनाकर यह सख्त संदेश देने का भी अवसर है।

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