असम में भारत के नागरिकों और अवैध रूप से वहां रह रहे विदेशी घुसपैठियों की पहचान करने का महती प्रयास एक महत्वपूर्ण मुकाम पर पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर तैयार हो रहे नागरिकों के रजिस्टर (एनआरसी) का पहला ड्राफ्ट नए साल की शुरुआत के साथ भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त के कार्यालय ने जारी किया। इससे पुष्टि हुई कि जिन तीन करोड़ 29 लाख लोगों ने असम का बाशिंदा होने का दावा किया था, उनमें से एक करोड़ 90 लाख लोगों के पास इसके पक्ष में वैध दस्तावेज हैं। बाकी एक करोड़ 39 लाख लोगों के दावों की जांच अभी बाकी है। यानी असल में असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या कितनी है, ये जानने में अभी कुछ वक्त लगेगा। उम्मीद है कि अगले कुछ महीनों में ये काम अपने ठोस निष्कर्ष पर पहुंच जाएगा।
गौरतलब है कि 1951 के बाद देश में पहली बार कहीं एनआरसी बन रहा है। असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों का सवाल तीखे विवाद का विषय है। इस मुद्दे को लेकर 1980 के दशक में असम में व्यापक जन-आंदोलन हुआ था। उसकी समाप्ति तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के बीच अगस्त 1985 में हुए समझौते से हुई। उसमें सहमति बनी कि 25 मार्च 1971 तक जो लोग असम में थे, उन्हें भारत का नागरिक माना जाएगा। चूंकि उस तारीख के बाद आए लोगों की पहचान करने का कोई दोषमुक्त प्रयास नहीं हुआ, इसलिए उस समझौते के बाद भी मसला जारी रहा। आखिरकार 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी बनाने का निर्देश दिया। इसमें ये पैमाना रखा गया है कि जिन लोगों के परिजनों के नाम 1951 की एनआरसी या 25 मार्च 1971 से पहले की मतदाता सूचियों में थे, उन्हें भारत का नागरिक समझा जाएगा। स्पष्टत: यह बेहद संवेदनशील मामला है। इसलिए इसमें फूंक-फूंककर कदम रखा जा रहा है। ऐसा होना भी चाहिए। यह बेहद जरूरी है कि लोगों को अपनी नागरिकता के दावों को साबित करने के पर्याप्त अवसर मिलें।
बहरहाल, जब ये काम पूरा हो जाएगा, तब एक नई चुनौती सामने आएगी। जो लोग अपनी नागरिकता सिद्ध नहीं कर पाएंगे, उनका क्या किया जाएगा? क्या बांग्लादेश उन्हें वापस लेने के लिए आसानी से राजी होगा? या उन्हें शरणार्थी का दर्जा देकर देश के अलग-अलग हिस्से में बसाया जाएगा? असमवासी अक्सर यह सवाल उठाते रहे हैं कि आखिर घुसपैठियों/शरणार्थियों का सारा बोझ उनका राज्य अकेले क्यों उठाए? इसलिए बेहतर होगा कि केंद्र इस बारे में राजनीतिक सहमति तैयार कर एक प्रभावी कार्ययोजना बनाए। एनआरसी बनने का एक अन्य लाभ यह होगा कि भविष्य में घुसपैठियों की पहचान आसानी से होती रहेगी। लेकिन ऐसा तब बेहतर ढंग से हो सकेगा, अगर सारे देश में एनआरसी बने। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के समय ऐसा विचार आया था। उचित होगा कि उस पर चर्चा फिर शुरू हो। 2021 में होने वाली जनगणना के साथ एनआरसी भी बनाने की योजना पूरे देश में लागू की जा सकती है। इस मामले में असम बाकी भारत के लिए एक मिसाल और मॉडल बन सकता है।
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