नासा ने आयनोस्फेयर का अन्वेषण करने के लिए गोल्ड और आईकॉन नामक दो मिशन लांच किये:
पृथ्वी से महज 96 किमी ऊपर के अंतरिक्ष क्षेत्र को अब तक अच्छी तरह नहीं समझा जा सका है। नासा ने इस हिस्से को समझने और अन्वेषित करने के लिए दो मिशन भेजने की तैयारी की है। पहला मिशन इसी महीने और दूसरा अगले साल अंतरिक्ष में भेजा जाएगा।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 04 जनवरी 2018 को एलान किया कि 'ग्लोबल-स्केल ऑब्जर्वेशन ऑफ द लिम्ब एंड डिस्क' (गोल्ड) मिशन को जनवरी 2018 में लांच किया जाएगा।
वहीं अंतरिक्ष यान 'आयनोस्फेयरिक कनेक्शन एक्सप्लोरर' (आइकॉन) को अगले साल 2019 में अंतरिक्ष में रवाना किया जाएगा। ये दोनों मिशन धरती और अंतरिक्ष की सीमा के बीच वाले क्षेत्र यानी आयनमंडल (आयनोस्फेयर) की पड़ताल करेंगे।
आयनमंडल (आयनोस्फेयर) में सूर्य के विकिरण से अणु विद्युत आवेशित इलेक्ट्रॉन और आयन के संपर्क में आते हैं। धरती से प्रेषित रेडियो तरंगें भी इसी मंडल से परावर्तित होकर दोबारा पृथ्वी पर लौट जाती हैं।
इसलिए विमानों, समुद्री जहाजों और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) उपग्रहों में रेडियो सिग्नलों के इस्तेमाल के लिए इस मंडल में मानवीय दबदबा बढ़ता जा रहा है। नासा ने कहा कि दोनों मिशन एक-दूसरे के पूरक हैं।
आइकॉन मिशन 560 किमी ऊपर से धरती की परिक्रमा करेगा। यह आयनमंडल के पास से उड़ान भरेगा। जबकि गोल्ड भू-भौगोलिक कक्षा यानी वेस्टर्न हेमिस्फिर से धरती की परिक्रमा करेगा।
यह क्षेत्र धरती की सतह से करीब 35 हजार किमी ऊपर है। यह अंतरिक्ष यान आयनमंडल की पूरी आकृति तैयार करेगा। ये दोनों मिशन उस समय एक-दूसरे का सहयोग कर भी सकते हैं जब आइकान गोल्ड के पास से गुजरेगा।
आयनमंडल (Inosphere):
पृथ्वी से लगभग 80 किलोमीटर के बाद का संपूर्ण वायुमंडल आयनमंडल कहलाता है। आयतन में आयनमंडल अपनी निचली हवा से कई गुना अधिक है लेकिन इस विशाल क्षेत्र की हवा की कुल मात्रा वायुमंडल की हवा की मात्रा के 200वें भाग से भी कम है।
आयनमंडल की हवा आयनित होती है और उसमें आयनीकरण के साथ-साथ आयनीकरण की विपरीत क्रिया भी निरंतर होती रहती हैं। प्रथ्वी से प्रषित रेडियों तरंगे इसी मंडल से परावर्तित होकर पुनः पृथ्वी पर वापस लौट आती हें। आयनमंडल में आयनीकरण की मात्रा, परतों की ऊँचाई तथा मोटाई, उनमें अवस्थित आयतों तथा स्वतंत्र इलेक्ट्रानों की संख्या, ये सब घटते बढ़ते हैं।
आयनमंडल को चार परतों में बाँटा गया है। पृथ्वी के लगभग 55 किलोमीटर के बाद से डी परत प्रारंभ होती है। डी परत के बाद ई-परत है जो अधिक आयनों से युक्त है। यह आयनमंडल की सबसे टिकाऊ परत है और इसकी पृथ्वी से ऊँचाई लगभग 145 किलोमीटर है। इसे केनली हेवीसाइड परत भी कहते हैं।
तीसरी एफ-वन परत हैं। यह पृथ्वी से लगभग 200 किलोमीटर की ऊँचाई पर हैं। गरमियों की रातों तथा जाड़ों में यह अपनी ऊपर की परतों में समा जाती है।
अंत में 240 से 320 किलोमीटर के मध्यअति अस्थि एफ-टू परत हैं।
ओजोन लेयर (Ozone Layer) के क्षरण में कमी आई है: नासा
पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के लिए रक्षाकवच के तौर पर काम करने वाली ओजोन लेयर के क्षरण में कमी आई है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने कहा है कि क्लोरीन युक्त मानवनिर्मित रसायन क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध लगने से ओजोन परत के क्षरण में करीब 20 प्रतिशत की कमी आई है।
सीएफसी लंबे समय तक टिके रहने वाले ऐसे रासायनिक तत्व हैं जो अपने आप समतापमंडल में बनते हैं, वहां वे सूर्य की पराबैंगनी किरणों से टूट जाते हैं। इससे क्लोरीन के परमाणु उत्पन्न होते हैं जो ओजोन के अणुओं को क्षति पहुंचाते हैं।
मेरीलैंड स्थित नासा के गोडर्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के वायुमंडलीय घटनाओं पर कार्य कर रहे वैज्ञानिक व प्रमुख लेखक सुसैन स्ट्रैहन ने कहा, "हम बहुत ही स्पष्ट रूप में देखते हैं कि ओजोन के छेद में सीएफसी से निकलने वाले क्लोरीन में कमी आई है और इसी कारण ओजोन परत का क्षय कम हो रहा है।"
वैज्ञानिकों का कहना है कि सीएफसी पर प्रतिबंध के फलस्वरूप 2005 से 2016 में अंटार्कटिक में शीतकाल के दौरान ओजोन के सुराख में करीब 20 फीसदी की कमी आई है। जबकि क्लोरीन स्तर में सालाना 0.8 फीसदी की कमी आई है।
दक्षिणी गोलार्ध में जाड़े की शुरुआत से अंत तक यानी जुलाई के आरंभ से मध्य सितंबर तक अंटार्कटिक के ऊपर ओजोन के स्तरों में होने वाले परिवर्तन की गणना 2005 से 2016 तक रोजाना माइक्रोवेव लिंब साउंडर (एमएलएस) द्वारा किया गया था।
जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित इस शोध अध्ययन के शोधकर्ताओं ने बताया कि अंटार्कटिक ओजोन सुराख में धीरे-धीरे सुधार होना चाहिए, क्योंकि वायुमंडल से सीएफसी समाप्त हो रहे हैं। लेकिन पूरा सुधार होने में दशकों लग जाएंगे।
ओजोन परत:
ओजोन परत पृथ्वी के वायुमंडल की एक परत है जिसमे ओजोन गैस की सघनता अपेक्षाकृत अधिक होती है। इसे O3 के संकेत से प्रदर्शित करते हैं। यह परत सूर्य के उच्च आवृत्ति के पराबैंगनी प्रकाश की 93-99 % मात्रा अवशोषित कर लेती है, जो पृथ्वी पर जीवन के लिये हानिकारक है। पृथ्वी के वायुमंडल का 91 % से अधिक ओजोन यहां मौजूद है।
यह मुख्यतः समतापमंडल (स्ट्रैटोस्फियर) के निचले भाग में पृथ्वी की सतह के ऊपर लगभग 10 किमी से 50 किमी की दूरी तक स्थित है, यद्यपि इसकी मोटाई मौसम और भौगोलिक दृष्टि से बदलती रहती है।
ओजोन की परत की खोज 1913 में फ्रांस के भौतिकविदों फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन ने की थी। इसके गुणों का विस्तार से अध्ययन ब्रिटेन के मौसम विज्ञानी जी एम बी डोबसन ने किया था। उन्होने एक सरल स्पेक्ट्रोफोटोमीटर विकसित किया था जो स्ट्रेटोस्फेरिक ओजोन को भूतल से माप सकता था। ओजोन की मात्रा मापने की सुविधाजनक इकाई का नाम डोबसन के सम्मान में डोबसन इकाई रखा गया है।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल:
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, ओज़ोन परत को क्षीण करने वाले पदार्थों के बारे में अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो ओज़ोन परत को संरक्षित करने के लिए, चरणबद्ध तरीके से उन पदार्थों का उत्सर्जन रोकने के लिए बनाई गई है, जिन्हें ओज़ोन परत को क्षीण करने के लिए उत्तरदायी माना जाता है।
इस संधि को हस्ताक्षर के लिए 16 सितंबर (ओजोन दिवस) 1987 को खोला गया था और यह 1 जनवरी 1989 में प्रभावी हुई, जिसके बाद इसकी पहली बैठक मई, 1989 में हेलसिंकी में हुई। ऐसा माना जाता है कि अगर अंतर्राष्ट्रीय समझौते का पूरी तरह से पालन हो तो, 2050 तक ओज़ोन परत ठीक होने की उम्मीद है।
2010 के बाद से, प्रोटोकॉल के एजेंडे का ध्यान हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFCs) को कम करने पर केंद्रित है जिनका मुख्य रूप से ठंडे और प्रशीतन अनुप्रयोगों और फोम उत्पादों के निर्माण में प्रयोग किया जाता है।
वियना संधि:
यह ओजोन परत के संरक्षण के लिए एक बहुपक्षीय पर्यावरण समझौता है। इस पर 1985 के वियना सम्मेलन में सहमति बनी और 1988 में यह लागू किया गया। 196 देशों (सभी संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के साथ- साथ ही होली सी, नियू और कुक आइलैंड्स) के साथ-साथ यूरोपीय संघों द्वारा इसे मंजूर किया जा चुका है।
वियना संधि, ओजोन परत की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के लिए एक ढांचे के रूप में कार्य करता है। हालांकि, इसमें सीएफसी के इस्तेमाल के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी न्यूनता के लक्ष्य शामिल नहीं हैं, ओजोन रिक्तीकरण का मुख्य कारण रासायनिक कारक हैं। उपरोक्त बातें मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में रखी गयीं हैं।
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