ऐतिहासिक भारत-आसियान स्मृति शिखर सम्मेलन के एक दिन पहले आसियान के सभी राज्य प्रमुखों के सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारत की कनेक्टिविटी और समुद्री सुरक्षा योजनाओं पर विस्तृत और व्यापक प्रस्तुति दी जाएगी। इस वर्ष गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान आसियान सदस्य देशों के सभी राज्य प्रमुखों के समक्ष प्रमुख भारतीय हथियारों का भव्य प्रदर्शन किया जाएगा।
भारत- आसियान संबंध:
भारत द्वारा नए साल में आसियान के सभी 10 सदस्य देशों के साथ मेगा कनेक्टिविटी योजनाओं के ज़रिये अपने संबंधों को और मज़बूती प्रदान करने की कोशिश की जा रही है तथा समुद्री सुरक्षा और सहयोग पर एक भव्य रोडमैप तैयार किया जा रहा है।
1990 के दशक में देश में कई नई नीतियाँ बनाई गईं और देश में आर्थिक सुधारों और उदारीकरण के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का भी नया दौर शुरू हुआ। इस दशक के प्रारंभ में (1992) भारत ने अपनी 'लुक ईस्ट नीति’ की घोषणा की जिसके केंद्र में आसियान देश थे, क्योंकि आसियान देशों में चीन अपना प्रभाव बढ़ाता जा रहा था। दक्षिण एशिया के ये देश न केवल सामरिक रूप से, बल्कि आर्थिक रूप से भी भारत के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। इसके मद्देनज़र भारत नें आसियान देशों के साथ अपने संबंधों को विस्तार देने की शुरुआत की है।
2014 में म्याँमार में हुए आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में भारत ने अपनी 'लुक ईस्ट पॉलिसी' के स्थान पर नई 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' घोषित की थी।
भारत-आसियान वार्ता के पिछले ढाई दशकों ने साझेदारी के तीन स्तंभों- राजनीतिक, सैन्य सहयोग, आर्थिक तथा सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग को गहन करने का मार्ग प्रशस्त किया है। भारत-आसियान वार्ता में इस समय 26 अंतर-सकारी तंत्र हैं, जिनमें व्यापक श्रेणी के क्षेत्र शामिल हैं।
आसियान (ASEAN): एक नज़र
आसियान की स्थापना 8 अगस्त,1967 को थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में की गई थी।
थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस और सिंगापुर इसके संस्थापक सदस्य थे।
वर्तमान में ब्रूनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम इसके दस सदस्य हैं।
इसका मुख्यालय इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में है।
भारत-आसियान कनेक्टिविटी:
दक्षिणी चीन सागर में चीन द्वारा अपनाए जा रहे आक्रामक रवैये के साथ-साथ इस क्षेत्र में कृत्रिम द्वीपों का निर्माण और उन्हें सैन्य अड्डों में परिवर्तित करने की उसकी पहल को देखते हुए आसियान देश इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी व सुरक्षा के लिये भारत को एक बड़ी भूमिका निभाने की माँग कर रहे हैं।
भारत की पिछली सरकार के द्वारा 'लुक ईस्ट' नीति को बढ़ावा देने के लिये 2010 में आसियान-भारत कनेक्टिविटी का खाका तैयार किया गया था। फिर इसे 'एक्ट ईस्ट' पॉलिसी के तहत वर्तमान सरकार द्वारा जारी किया गया।
भारत-आसियान स्मृति शिखर सम्मेलन के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आसियान के साथ कनेक्टिविटी को बढ़ाने वाली कुछ निर्माण गतिविधियों पर एक विस्तृत अद्यतन रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे जो लंबे समय से चल रही हैं। ऐसी ही एक परियोजना भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग है जो मणिपुर के मोरेह से शुरू होती है और म्याँमार से होते हुए बैंकॉक तक जाती है। इस परियोजना के 2020 तक पूरा होने की उम्मीद है।
भारत, थाईलैंड और म्याँमार मिलकर लगभग 1600 किमी. लंबा राजमार्ग बनाने पर काम कर रहे हैं। इसके बनने के बाद भारत का संपर्क सुदूर के आसियान देशों से हो जाएगा। इस मार्ग पर म्याँमार में दूसरे विश्व युद्ध के समय बनाए गए लगभग सात दशक पुराने 73 पुलों की मरम्मत भारत की मदद से की जा रही है। सीमा सड़क संगठन ने जहाँ 272.8 लाख डॉलर में म्याँमार के तमु-कालेवा- कालेम्यो खंड में 160 किमी. लंबी सड़क को अपग्रेड किया है।
भारत-म्याँमार-थाईलैंड के बीच बन रहे सड़क मार्ग का विस्तार कम्बोडिया-लाओस के रास्ते वियतनाम तक करने पर भी सहमति बनी है। इसके लिये 1370 किमी. सड़क अलग से बनाने का प्रस्ताव है। भारत से वियतनाम तक के इस प्रस्तावित 3200 किमी. लंबे राजमार्ग को ‘ईस्ट-वेस्ट इकॉनोमिक कॉरीडोर’ का नाम दिया गया है।
2008 से जारी कालादान परियोजना के तहत कोलकाता बंदरगाह को म्याँमार के सितवे बंदरगाह से जोड़ा जाना है। इससे भारत और म्याँमार के बीच होने वाले व्यापार के खर्च में 40% तक की कमी आने की संभावना है। इससे पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के साथ ही आसियान के मुख्य द्वार म्याँमार तक भारत की पहुँच हो जाएगी।
आसियान-भारत वायु सेवा समझौते तथा समुद्री परिवहन समझौते के अधिक उदारीकरण से वायु और समुद्री संपर्क द्वारा आसियान-भारत सहयोग को बढ़ाया जा सकता है।
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