Thursday 29 March 2018

न्यूनतम समर्थन मूल्य की चुनौतियाँ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात के माध्यम से किसानों को कृषि उपज की लागत का डेढ़ गुना एमएसपी अर्थात न्यूनतम समर्थन मूल्य का भरोसा दिलाने के बाद यह आवश्यक हो जाता है कि इस संदर्भ में कोई ठोस रूपरेखा भी सामने आए। इसकी जरूरत इसलिए और भी ज्यादा बढ़ गई है, क्योंकि ऐसी खबरें आ रही हैं कि विभिन्न् मंडियों में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कहीं कम पर अपनी उपज बेचनी पड़ रही है। कृषि उपज की लागत का डेढ़ गुना दाम देने की घोषणा पर अमल नए वित्त वर्ष से होना है।

इस कठिनाई के चलते किसानों में असंतोष भी बढ़ रहा है और वे अपने भविष्य को लेकर बेचैन भी हो रहे हैं। कृषि उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य के मामले में एक बड़ी समस्या उसके निर्धारण को लेकर है। हालांकि प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया कि कृषि उपज की लागत तय करने में बीज, खाद, सिंचाई आदि के मूल्य के साथ श्रमिकों और खुद किसानों की मेहनत का भी मूल्य जोड़ा जाएगा, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं कि यह काम किस फॉर्मूले के तहत होगा? इसमें और देर नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि एक तो नया वित्त वर्ष शुरू होने ही वाला है और दूसरे, एमएसपी को लगातार राजनीतिक मसला बनाया जा रहा है। ऐसे सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर जब वर्तमान में किसानों को अपनी उपज तय एमएसपी से नीचे बेचनी पड़ रही है, तब इसकी क्या गारंटी कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा? इस सवाल को हल करके ही आशंकाओं को दूर किया जा सकता है।

यह सही है कि केंद्र सरकार की ओर से बार-बार यह रेखांकित किया जा रहा है कि वह वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन इस वायदे को पूरा करने के लिए अभी तक जो भी कदम उठाए गए हैं, उनसे अभीष्ट की पूर्ति होती दिख नहीं रही है। इससे इनकार नहीं कि खाद की उपलब्धता को सुनिश्चित करने, मिट्टी का परीक्षण कराने की सुविधा प्रदान करने के साथ जो अन्य अनेक उपाय किए गए हैैं, उनसे किसानों को कुछ न कुछ लाभ मिला है, लेकिन इस सबके बावजूद खेती अभी भी घाटे का सौदा बनी हुई है।

चूंकि आम चुनाव में अब एक वर्ष ही रह गया है, इसलिए सरकार को ऐसा कुछ करना ही होगा, जिससे अगले कुछ माह में किसानों को यह भरोसा हो जाए कि 2022 तक उनकी आय सचमुच दोगुनी होने जा रही है। कृषि और किसानों के उत्थान की जितनी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है, उतनी ही राज्य सरकारों की भी। ऐसे में बेहतर यह होगा कि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए जो रूपरेखा बननी है, उसमें राज्य भी शामिल हों, ताकि इसे लेकर कोई संशय न रहे कि राज्य सरकारों को क्या और कितनी जिम्मेदारी वहन करनी है।


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