हाल ही में नीति आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में जन्म के समय लिंगानुपात (Sex Ratio at Birth-SRB) 2012-2014 के 906 से घटकर 2013-2015 में 900 हो गया था।
SRB प्रत्येक 1000 लड़कों पर पैदा होने वाली लड़कियों की संख्या को दर्शाता है।
SRB में गिरावट के कारण आज भारत और चीन जैसे देशों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की संख्या बढ़ रही है। इससे पुरुषों और महिलाओं दोनों के प्रति हिंसा में बढ़ोतरी के साथ ही मानव तस्करी जैसे अपराध भी बढ़ रहे हैं।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष :
1. भारत के 21 बड़े राज्यों में से 17 में SRB में गिरावट देखी गई। 53 अंकों की गिरावट के साथ गुजरात राज्य का प्रदर्शन सबसे खराब रहा।
2. भारत के नमूना पंजीकरण प्रणाली के नए आँकड़े दिखाते हैं कि 2014-2016 में SRB 900 से कम होकर 898 हो गया है।
3. भारत में 1970 के दशक से ही SRB में लगातार गिरावट देखी जा रही है।
4. प्रकृति द्वारा पुरुषों की उच्च मृत्यु दर को संतुलित करने के चलते प्राकृतिक परिस्थितियों में SRB 952 के आसपास रहता है क्योंकि मादा शिशु की तुलना में नर शिशु जैविक रूप से कमज़ोर होते है और ऐतिहासिक रूप से भी युद्ध जैसी ज़ोखिमकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण पुरुषों की मृत्यु दर अपेक्षाकृत अधिक रही है।
5. लेकिन इस मामले में भारत की स्थिति अलग है। भारत SRB के 952 से भी कम रहने का कारण पुत्र प्राथमिकता की सामाजिक बुराई है। इसका मतलब यही है की हम गर्भ में ही लड़कियों को मार रहे हैं।
6. इस तरह के कार्यों से भारत में लगभग 63 मिलियन लड़कियों के खो जाने का अनुमान है।
कम लिंगानुपात को बढ़ावा देने वाले तरीके
1970 के दशक तक कन्या शिशु वध फीमेल चाइल्ड को मारने का प्रचलित तरीका था।
किंतु सत्तर के दशक में आनुवंशिक असामान्यताओं का पता लगाने में प्रयुक्त की जाने वाली एम्नियोसेंटेसिस (Amniocentesis) तकनीक तथा अल्ट्रासाउंड प्रौद्योगिकी का भ्रूण के लिंग-निर्धारण में प्रयोग किया जाने लगा। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (2010) की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन प्रौद्योगिकियों ने पुत्र प्राथमिकता जैसी समस्याओं को बढ़ावा दिया।
लिंग चयन की सुविधाओं के फलने-फूलने के बाद लोग गर्भपात के विकल्प का धड़ल्ले से प्रयोग करने लगे।
लिंगानुपात को संतुलित करने के लिये किये गए सरकारी प्रयास :
घटते लिंगानुपात की रोकथाम हेतु 1994 में सरकार ने प्रसव पूर्व नैदानिक तकनीक (PNDT) अधिनियम लागू किया जिसके तहत माता-पिता को भ्रूण के लिंग संबंधी जानकारी देने पर स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के लिये कड़ी सज़ा और आर्थिक जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
2003 में गर्भाधान पूर्व लिंग चयन में सक्षम प्रौद्योगिकियों के आने के बाद इस अधिनियम को संशोधित करते हुए इसे गर्भधारण-पूर्व और प्रसव-पूर्व परीक्षण तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम के रूप में अधिनियमित किया गया।
इस अधिनियम के प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं-
► गर्भाधान पूर्व लिंग चयन तकनीक को प्रतिबंधित करना।
► लिंग चयन संबंधी गर्भपात के लिये जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीकों के दुरुपयोग को रोकना।
► जिस उद्देश्य से जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीकों को विकसित किया गया है, उसी दिशा में उनके समुचित वैज्ञानिक उपयोग को नियमित करना।
► सभी स्तरों पर अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना।
PCPNDT अधिनियम का मूल्यांकन
भारत में लिंगानुपात में जारी गिरावट दर्शाती है कि यह कानून अपने उद्देश्यों को पाने में विफल रहा है। लगभग 17 राज्यों में या तो इस अधिनियम के तहत एक भी मामला दर्ज नहीं किया गया या इसके तहत दोषसिद्धि दर शून्य रही।
2010 में PHFI रिपोर्ट में यह कहा गया कि PC-PNDT को लागू करने वाले कार्मिकों के प्रशिक्षण में काफी अंतराल है। इसका अर्थ है कि दोषसिद्धि को सुनिश्चित करने हेतु इस कानून के उल्लंघनकर्त्ताओं के खिलाफ मजबूत केस बनाने में कार्मिक असमर्थ थे।
सरकारों को PC-PNDT अधिनियम को सख्ती से लागू करने के साथ ही पुत्र प्राथमिकता की बुराई से लड़ने के लिये अधिक संसाधनों का आवंटन करना चाहिये। पिछले हफ्ते ही ड्रग्स तकनीकी सलाहकार बोर्ड ने अल्ट्रासाउंड मशीनों को ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट में शामिल करने का निर्णय लिया है ताकि इनके आयात को विनियमित किया जा सके।
Sex Ratio at Birth (SRB) is the number of girls born for every 1,000 boys.
A recent report from the NITI Aayog said sex ratio at birth (SRB) nationwide had dropped from 906 in 2012-2014 to 900 in 2013-2015. In all, 17 of 21 large Indian States saw a drop in the SRB, with Gujarat performing the worst, declining 53 points. Also, newer data from India’s Sample Registration System show the SRB fell even further in 2014-2016, from 900 to 898.
Why is this a unique case for India?
The number of girls born is naturally lower than the number of boys, and demographers speculate that this may be nature’s way of offsetting the higher risk that men have of dying — male babies are biologically weaker than females, and men have historically seen higher mortality rates owing to risk-taking behaviour and participation in wars. This evens out the sex ratio of a population as it grows older. But India is a special case. Its SRB is far lower than 952 because of the preference for the male child. This means we are killing girl children in the womb. As on today, around 63 million girls are estimated to be ‘missing’ in India because of such actions.
Why does it matter?
Low SRBs starting from the Seventies have led to large numbers of “surplus men” today in countries like India and China. There are concerns that skewed sex ratios lead to more violence against both men and women, as well as human-trafficking. In India, some villages in Haryana and Punjab have such poor sex ratios that men “import” brides from other States. This is often accompanied by the exploitation of these brides.
Performance of PC- PNDT:
From female infanticide till 1970s to the emergence of sex selection technologies in 1980s, people have always found ways to have male child. A thriving market for sex selection sprung up with doctors openly advertising their services. In 1994, the government took notice and introduced the Prenatal Diagnostics Techniques Act which punishes healthcare professionals for telling expectant parents the sex of a child with imprisonment and hefty fines. In 2003, when technologies that allowed gender-selection even before conception became available, the act was amended to become the Prenatal Conception and Prenatal Determination Act (PC-PNDT).
By any token, this Act has been a failure. In November 2016, a report from the Asian Centre for Human Rights noted that between 1994 and 2014, 2,266 cases of infanticide were registered in India, against 2,021 cases of abortion under the PC-PNDT, even though abortions outnumber infanticides today. In all, 17 out of 29 States had either not registered any case, or had zero convictions. The PHFI report in 2010 found major gaps in the training of personnel implementing PC-PNDT. Poor training meant that they were unable to prepare strong cases against violators to secure convictions.
Way ahead:
Now, India must implement the PC-PNDT more stringently, but must also dedicate more resources to fighting the preference for boys.
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