Sunday, 10 December 2017

राष्‍ट्रीय ट्रेकोमा Trachoma सर्वेक्षण रिपोर्ट (2014-17)

राष्‍ट्रीय ट्रेकोमा प्रचार सर्वेक्षण और ट्रेकोमा रैपिड असेसमेंट सर्वेक्षण डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद सेंटर फॉर ऑपथेलमिक साइंस, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान नई दिल्‍ली ने 2014 से 2017 तक नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्‍लाइंडनेस एंड विजुअल इम्‍पेयरमेंट के सहयोग से किया। सर्वेक्षण 23 राज्‍यों और संघ शासित प्रदेशों के 27 सबसे अधिक जोखिम वाले जिलों में किया गया।

केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्री जे.पी नड्डा ने 08 दिसंबर 2017 को राष्‍ट्रीय ट्रेकोमा सर्वेक्षण रिपोर्ट (2014-17) जारी की। उन्‍होंने घोषणा की कि भारत अब ‘रोग पैदा करने वाले ट्रेकोमा’ से मुक्‍त हो गया है।

ट्रेकोमा क्या है?

Trachoma is a contagious bacterial infection which affects the conjunctival covering of the eye, the cornea, and the eyelids. It is often associated with poverty and lack of proper hygiene. Trachoma is caused by the Chlamydia trachomatis bacteria and is essentially totally preventable and curable.

ट्रेकोमा (रोहे-कुक्‍करे) आंखों का दीर्घकालिक संक्रमण रोग है और इससे दुनिया भर में अंधेपन के मामले सामने आते हैं। यह खराब पर्यावरण और निजी स्‍वच्‍छता के अभाव तथा पर्याप्‍त पानी नहीं मिलने के कारण होने वाली बीमारी है। यह आंखों की पलकों के नीचे झिल्‍ली को प्रभावित करता है।

बार-बार संक्रमण होने पर आंखों की पलकों पर घाव होने लगते हैं, इससे कोर्निया को नुकसान पहुंचता है और अंधापन होने का खतरा पैदा हो जाता है। इससे गुजरात, राजस्‍थान, पंजाब, हरियाणा, उत्‍तरप्रदेश और निकोबार द्वीप के कुछ स्‍थानों के लोग प्रभावित पाए गए हैं। ट्रेकोमा संक्रमण 1950 में भारत में अंधेपन का सबसे महत्‍वपूर्ण कारण था और गुजरात, राजस्‍थान, पंजाब और उत्‍तर प्रदेश में 50 प्रतिशत आबादी इससे प्रभावित थी।

प्रमुख तथ्य:

सर्वेक्षण के निष्‍कर्षों से संकेत मिलता है कि सर्वेक्षण के सभी जिलों में बच्‍चों में ट्रेकोमा संक्रमण समाप्‍त हो चुका है और इसकी मौजूदगी केवल 0.7 प्रतिशत है। यह डब्‍ल्‍यूएचओ द्वारा परिभाषित ट्रेकोमा की समाप्ति के मानक से बहुत कम है।

ट्रेकोमा को उस स्थिति में समाप्‍त माना जाता है, यदि उसके सक्रिय संक्रमण की मौजूदगी 10 वर्ष से कम उम्र के बच्‍चों में 5 प्रतिशत से कम हो।

केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने कहा कि हमने डब्‍ल्‍यूएचओ के जीईटी 2020 कार्यक्रम के अंतर्गत निर्दिष्‍ट लक्ष्‍य के अनुसार ट्रेकोमा का सफाया करने का लक्ष्‍य हासिल कर लिया है।

सरकार द्वारा किया गया सघन प्रयास:

यह कई दशकों के प्रयासों के बाद संभव हुआ है, जिनमें एंटीबायोटिक आईड्रॉप का प्रावधान, निजी सफाई, सुरक्षित जल की उपलब्‍धता, पर्यावरण संबंधी बेहतर स्‍वच्‍छता, क्रोनिक ट्रेकोमा के लिए सर्जिकल सुविधाओं की उपलब्‍धता और देश में सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सामान्‍य सुधार शामिल हैं।

सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी होने पर नड्डा ने कहा कि हमारा लक्ष्‍य देश से ट्रेकोमेट्सस्‍ट्रीचियासिस को समाप्‍त करना है। ऐसे राज्‍य जो अभी भी सक्रिय ट्रेकोमा के मामलों की जानकारी दे रहे हैं, उन्‍हें ट्रेकोमेट्सस्‍ट्रीचियासिस के मरीजों के समुदाय आधारित निष्‍कर्षों को प्राप्‍त करने के लिए एक रणनीति विक‍सित करने की जरूरत है।

ऐसे मामलों की स्‍थानीय अस्‍पतालों में मुफ्त एंट्रोपियन सर्जरी/इलाज की व्‍यवस्‍था होनी चाहिए। ऐसे पहचाने गये प्रत्‍येक मामले को सावधानी से दर्ज किया जाना चाहिए और इसके प्रबंधन की स्थिति का डब्‍ल्‍यूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुसार रखरखाव किया जाए।

साथ ही भारत को ट्रेकोमा मुक्‍त प्रमाणित करने के लिए देश भर में इस बीमारी की पर्याप्‍त निगरानी की जानी चाहिए। डब्‍ल्‍यूएचओ के दिशा निर्देशों के अनुसार ट्रेकोमा निगरानी के संकेतों पर मासिक आंकड़े नियमित रूप से एनपीसीबी को भेजे जाएं।

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