Saturday 13 January 2018

पीएसएलवी-सी40 "इसरो की नई उड़ान" : अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय में भारत का एक तिहाई कब्जा

साल 2018 के आरंभ में ही भारत ने अंतरिक्ष में एक नई कीर्ति पताका लहराई है। 12 जनवरी की सुबह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पीएसएलवी-सी40 के जरिए कार्टोसैट-2 श्रृंखला के उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया। इसके साथ ही इसरो ने अपने उपग्रहों को प्रक्षेपित करने का शतक पूरा कर लिया। शुक्रवार को छोटे-बड़े कुल 31 उपग्रह प्रक्षेपित किए गए। यह उच्च कौशल का काम था। न उपग्रहों में तीन भारतीय उपग्रह थे, शेष 28 उपग्रह विदेशी राष्ट्रों कनाडा, फिनलैंड, फ्रांस, कोरिया, ब्रिटेन और अमेरिका के थे। हमारा ध्रुवीय रॉकेट और उसकी प्रौद्योगिकी इतनी परिपक्व हो चुकी है कि हमें विदेशी ग्राहक भी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए मिलने लगे हैं। इस उड़ान के पूर्व हमारे धुवीय रॉकेट ने लघु और मध्यम श्रेणी के 209 विदेशी उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण कर दिया है, और अब हो गये हैं 209+28=237 अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार विदेशी उपग्रह प्रक्षेपण का किराया पंद्रह से बीस हजार डॉलर प्रति ग्राम पेलोड(उपग्रहों का भार) है। इस प्रकार इसरो की विपणन एजेंसी एंट्रिक्स कॉरपोरेशन ने उपग्रह प्रक्षेपण से अच्छी खासी राशि अर्जित की है। इस कामयाबी से देश का नाम और भी रोशन हुआ है।

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अंतरराष्ट्रीय व्यवसाय में भारत का एक तिहाई कब्जा
यह उल्लेखनीय है कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अंतरराष्ट्रीय व्यवसाय में भारत ने एक तिहाई बाजार पर अपना कब्जा कर लिया है। इस उड़ान में सर्वप्रमुख उपग्रह था कार्टोसेट-2 शृंखला का नवीनतम उपग्रह कार्टोसेट-2 एफ जिसका भार 710 किलोग्राम था। कार्टोसेट शृंखला का यह सातवां उपग्रह था। इसके साथ इसरो के ही दो और उपग्रह थे-100 किलोग्राम वजनी माइक्रो सैट और 11 किलोग्राम वजनी आइएनएस-1सी यानी इंडियन नैनो सैटेलाइट। इस उड़ान में इन उपग्रहों को दो भिन्न-भिन्न धुवीय कक्षाओं में स्थापित करना था।

इसरो के कर्मठ इंजीनियरों के लिए धुवीय मिशन एक चुनौती थी
यह एक चुनौती थी, लेकिन इसरो के कर्मठ इंजीनियरों ने इस मिशन को कुशलतापूर्वक अंजाम दे दिया। सबसे पहले उपग्रह कार्टोसेट-2 एफ को ध्रुवीय रॉकेट ने लिफ्ट ऑफ से 17 मिनट बाद 505 किलोमीटर की ऊंचाई वाली ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया। फिर शनै:-शनै: 28 विदेशी उपग्रहों को उनकी ध्रुवीय कक्षाओं में स्थापित किया। इस उड़ान में खास बात यह थी कि हमारे तीसरे उपग्रह माइक्रोसैट को 359 किलोमीटर की ऊंचाई वाली निचली कक्षा में स्थापित करना था। यह उपक्रम करने के लिए ध्रुवीय रॉकेट के चौथे चरण के इंजन को तीन बार पुन: प्रज्ज्वलित करना पड़ा ताकि उसकी गति कम हो जाए और वह 359 किलोमीटर के निम्न उन्नतांश पर आ जाए। अंतत: यह मिशन दो घंटे इक्कीस मिनट बाद समाप्त हुआ।

ध्रुवीय रॉकेट अभी तक दो बार विफल रहा
ध्रुवीय रॉकेट को अभी तक मात्र दो बार विफलताओं का सामना करना पड़ा है। उसकी पहली उड़ान 20 सितंबर, 1993 को आयोजित हुई थी (मिशन पीएसएलवी-डी1) जो विफल रही थी। रॉकेट के साथ इस पर सवार उपग्रह ‘आइआरएस-1ई’ भी जल कर नष्ट हो गया था। इसके बाद इसरो को दूसरी विफलता से 31 अगस्त, 2017 को दो-चार होना पड़ा, जब ध्रुवीय रॉकेट (मिशन पीएसएलवी-सी 39) के तापीय कवच उससे अलग नहीं हो सके। बहरहाल इसरो के वैज्ञानिकों ने खासी मशक्कत के बाद उस तकनीकी त्रुटि का समाधान कर दिया और इस प्रकार देश-विदेश की सारी एजेंसियों पर फिर से इसरो पर भरोसा कायम हो गया। ध्रुवीय रॉकेट की सफल उड़ान से इसरो का गौरववर्धन हुआ है। साथ ही पिछली विफल उड़ान से इसरो के वैज्ञानिकों का खोया हुआ आत्मविश्वास भी लौट आया है। इस शानदार सफल उड़ान से उनमें नई उमंग जाग्रत हुई है।

इसरो अध्यक्ष एएस किरण कुमार के कार्यकाल की अंतिम उड़ान
यह उड़ान इस मायने में भी विशिष्ट थी कि इसरो के वर्तमान अध्यक्ष एएस किरण कुमार के कार्यकाल की अंतिम उड़ान थी। किरण कुमार के नाम देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में उपलब्धियों के कई कीर्तिमान दर्ज हैं। वह 14 जनवरी को अवकाशमुक्त हो रहे हैं। इसरो के भावी अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव डॉ. के शिवम इसरो के नौवें अध्यक्ष होंगे। डॉ. के शिवम ने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल करके इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु से एमई की उपाधि अर्जित की और 1982 में इसरो ज्वाइन किया जब ध्रुवीय रॉकेट अपना रूपाकार ले रहा था। बाद में उन्हें भारत के सर्वाधिक शक्तिशाली रॉकेट जीएसएलवी का परियोजना निदेशक बना दिया गया और कहना न होगा कि उनके निर्देशन में जीएसएलवी की सफल उड़ानें हो चुकी हैं और हमारा यह रॉकेट तकनीकी परिपक्वता अर्जित कर चुका है। फलत: इनसैट/जीसैट जैसे संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण पर हमारी विदेशी एजेंसियों पर निर्भरता घटने लगी है। उम्मीद की जाती है इसरो की भावी उड़ानें भी बुलंदियों के नए-नए आसमान छू लेंगी।

यह सचमुच बड़े गर्व की बात है कि आज सर्वाधिक विकसित देश भी अपने उपग्रहों को इसरो से प्रक्षेपित करवाना फायदेमंद और सुरक्षित मानते हैं। भारत की ये महान उपलब्धि है। पाकिस्तान इस पर दुखी है, तो इसमें अचरज की कोई बात नहीं है। अपनी ईर्ष्या का इजहार उसने पीएसएलवी-सी40 के प्रक्षेपण से ठीक पहले किया। पाक विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बेवजह अंदेशा जताया कि भारत नए उपग्रहों का उपयोग सैन्य उद्देश्यों से कर सकता है, जिससे क्षेत्रीय सामरिक स्थिरता भंग होगी। स्पष्टत: ये बेसिरपैर की बात है। भारत ने कभी अंतरिक्ष तकनीक का फौजी उपयोग करने की नहीं सोची। लेकिन हमारा पड़ोसी पाकिस्तान कभी लड़ाई-भिड़ाई की सोच से उबर नहीं पाता।

बहरहाल, उसकी प्रतिक्रिया इसकी पुष्टि है कि भारत ने ऐसी सफलता प्राप्त की है, जिससे उसके शत्रु परेशान हैं। चार महीने पहले पीएसएलवी का पिछला प्रक्षेपण (सी39) नाकाम हो गया था। लेकिन सी40 को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में पहुंचाकर इसरो के विज्ञानियों ने यह जाहिर किया कि उनका आत्मविश्वास आज भी बुलंदियों पर है। प्रक्षेपण तकनीक बहुत जटिल, बारीक और चुनौतीपूर्ण मानी जाती है। किसी एजेंसी को इससे जुड़े ठेके तभी मिलते हैं, जब उसकी सफलता की दर अत्यंत ऊंची हो और उसकी क्षमता संदेह से परे हो। इसीलिए इसरो के ताजा प्रयास का कामयाब होना बेहद जरूरी था। आने वाले दिनों में इसरो को कई बड़े प्रक्षेपण करने हैं। 2018 में इसरो को औसतन हर महीने एक उपग्रह का प्रक्षेपण करना है। जीएसएलवी से अंतरिक्ष संबंधी कारोबार में भारत की भूमिका और मजबूत होगी। उसके दो साल बाद एसएसएलवी श्रृंखला की शुरुआत हो सकती है। चंद्रमा और मंगल ग्रह के लिए भारत के नए अभियान भी इस दौर में शुरू होंगे। आज हर भारतवासी इस आत्मविश्वास से ओतप्रोत है कि इसरो इन सबमें सफल होगा और उपग्रह एवं रॉकेट छोड़ने के क्षेत्र में वह दुनिया की नंबर एक एजेंसी बन सकेगा।

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