पंजाब नेशनल बैंक में अरबों रुपए का घोटाला सामने आने के बाद सरकार की नींद टूटी है। ऐसे घोटालों को कैसे रोका और कर्ज डकार कर भागने वालों से निपटा जाए, यह सवाल सरकार और बैंक प्रबंधन के लिए बड़ा सिरदर्द बना हुआ है। फिलहाल फौरी तौर पर सक्रिय हुए वित्त मंत्रालय ने सभी बैंकों को पंद्रह दिन की मोहलत देते हुए ऐसे जोखिमों से बचाव के लिए अपनी व्यवस्था चाकचौबंद करने को कहा है। अब अगर पचास करोड़ रुपए से ज्यादा का कोई कर्ज संदेह के घेरे में आता है तो बैंक को तत्काल इसकी सूचना केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) को देनी होगी। बड़े घोटालों से पार पाने के लिए सीबीआइ के अलावा प्रवर्तन निदेशालय और राजस्व खुफिया निदेशालय जैसी एजंसियां भी सक्रिय भूमिका निभाएंगी।
जो ताकतवर लोग कर्ज लेकर चंपत हो गए हैं, उनसे वसूली के लिए नया कानून बनाने की भी तैयारी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने संसद में भगौड़ा आर्थिक अपराधी विधेयक, 2018 (फ्यूजिटिव इकोनॉमिक ऑफेंडर्स बिल, 2018) को प्रस्तुत करने के लिए वित्त मंत्रालय के प्रस्ताव को अनुमति प्रदान कर दी है। इस विधेयक में भारतीय न्यायालयों के कार्यक्षेत्र से बाहर रहकर भारतीय कानूनी प्रक्रिया से बचने वाले आर्थिक अपराधियों की प्रवृत्ति को रोकने के लिए कड़े उपाय करने में मदद मिलेगी। इस कानून में आर्थिक अपराधों की जांच करने वाली एजंसियों को और सशक्त बनाने का प्रावधान है। यह कानून बनने के बाद ऐसे फरार घोटालेबाजों के खिलाफ मुकदमों के लिए विशेष अदालतें बनाई जाएंगी, जो इन मामलों का निपटारा करेंगी।
शुरू में नीरव मोदी-मेहुल चोकसी का घोटाला ग्यारह हजार चार सौ करोड़ रुपए का था, लेकिन अब यह बारह हजार सात सौ करोड़ को पार कर गया है। रोटोमैक कंपनी का साढ़े तीन हजार करोड़का घोटाला और सिंभावली शुगर मिल में सौ करोड़ से ऊपर का घपला भी उजागर हुआ। अभी ऐसे और घोटाले सामने आएं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। दरअसल, ये घोटाले बैंकों के कुप्रबंधन और गहरे पैठे भ्रष्टाचार की देन हैं। बैंक अफसरों की मदद से कर्जखोर कैसे लूट मचाते हैं, पंजाब नेशनल बैंक घोटाला इसका उदाहरण है। पीएनबी का उप प्रबंधक गोकुलनाथ शेट्टी सात साल से जिस संवेदनशील पद पर जमा था, उस पर तीन साल से ज्यादा किसी को नहीं रखा जा सकता, जबकि तीन बार शेट्टी के तबादला आदेश रद्द हुए। जाहिर है, शेट्टी की पहुंच ऊपर तक रही होगी और शीर्ष स्तर पर भी इससे कोई अनजान नहीं रहा होगा। अब वित्त मंत्रालय ने जो निर्देश दिए हैं उनमें शीर्ष स्तर के प्रबंधन की जिम्मेदारी सुनिश्चित की गई है।
इन घोटालों ने वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक को भी कठघरे में ला दिया है। लालफीताशाही संस्कृति में जकड़ा वित्त मंत्रालय इस बात से आंखें मूंदे रहा कि बैंकों में अंदर ही अंदर क्या हो रहा है। हाल में एक आरटीआइ पर वित्त मंत्रालय ने जवाब दिया था कि उसे विजय माल्या के कर्ज के बारे में कोई जानकारी नहीं है। माल्या के बारे में देश की जनता, बैंक, अदालतें सबको पता है, लेकिन वित्त मंत्रालय अनजान है। सरकार के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है? मोदी-चोकसी मामले में पंजाब नेशनल बैंक ने वित्त मंत्रालय को बताया है कि रिजर्व बैंक ने नौ साल से बैंक का ऑडिट नहीं किया। रिजर्व बैंक के पास अपने ऑडिटरों और इंस्पेक्टरों की लंबी-चौड़ी फौज है, जो किसी भी बैंक खाते की कभी भी जांच कर सकती है। मगर किसी ने अपना काम नहीं किया। यही सब उस सांठगांठ की ओर इशारा करता है, जिसकी वजह से ऐसे बड़े घोटाले हो जाते हैं। अगर पीएनबी का ऑडिट होता तो शायद घोटाला पकड़ में आ सकता था। वित्तीय व्यवस्था को संचालित करने वाले इस बहुआयामी तंत्र को कैसे दुरुस्त बनाया जाए, सरकार को इस पर गंभीरता से सोचना होगा।
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