Thursday 12 April 2018

बदलती वैश्विक व्यवस्था और नया शीत युद्ध

पिछले कुछ महीनों के दौरान वैश्विक व्यवस्था में तेजी से बदलाव दिखा है। 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्जे के बाद पश्चिम ने उस पर प्रतिबंध लादने शुरू कर दिए थे। ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान के दौरान कई मौकों पर जब यह कहा कि वह पुतिन के साथ अच्छे दोस्त की तरह पेश आएंगे, तब उम्मीद थी कि चीजें बदलेंगी। अब जबकि अमेरिकी चुनाव में रूसी दखल की पुष्टि हो चुकी है, वह उस देश पर प्रतिबंध के ऊपर प्रतिबंध लाद रहे हैं। ताजा घटनाक्रम में इस सूची में रूस के अनेक कुलीनों को भी शामिल किया गया है।


ब्रिटेन में सर्गेई स्क्रीपल एवं उनकी बेटी यूलिया पर रासायनिक हमले के बाद ज्यादातर पश्चिमी देशों ने रूसी राजनयिकों को देश छोड़ने का आदेश दिया। ब्रिटेन ने जहां 23 रूसी राजनयिकों का निष्कासन किया, वहीं अमेरिका ने 60 को निकाला। अमेरिका ने रूस को सिएटल दूतावास को भी बंद करने का आदेश दिया। इसमें 14 अन्य देश भी शामिल हो गए। रूस ने हर देश के खिलाफ इसी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त की, जिसमें सेंट पीटर्सबर्ग में अमेरिकी दूतावास बंद करने का आदेश भी है। इसने शीत युद्ध के बाद अमेरिका व उसके सहयोगी तथा रूस के बीच रिश्तों को निचले धरातल पर पहुंचा दिया। इसे अब नया शीत युद्ध कहा जा रहा है।


ट्रंप अपने चुनावी वायदों को पूरा करना चाहते हैं और चीन के खिलाफ अमेरिकी व्यापार असंतुलन को कम करना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने कई चीनी उत्पादों पर शुल्क लगा दिया है। पहले दौर में अमेरिका ने 50 अरब अमेरिकी डॉलर का शुल्क लगाया था। चीन ने भी वैसी ही प्रतिक्रिया जताई और अमेरिकी फल तथा सूअर के मांस पर उतनी ही राशि का शुल्क थोप दिया। इसके जवाब में अमेरिका ने चीनी आयात पर 100 अरब डॉलर का अतिरिक्त शुल्क थोप दिया। अगर चीन भी इसका जवाब देगा, तो दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध खराब होंगे। अमेरिका पहले ही दक्षिण चीन सागर में चीनी दावों को चुनौती दे रहा है। इस तरह पहले से ही एक-दूसरे के खिलाफ सैन्य शत्रुता रखने के अलावा चीन और अमेरिका व्यापार युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं।


अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने इस साल के शुरू में अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में कहा था, कि जब आतंकवाद के खिलाफ युद्ध धीरे-धीरे खत्म हो रहा है, रूस और चीन की धमकियां बढ़ रही हैं। ईरान, सीरिया, तुर्की और चीन के साथ रूस की बढ़ती निकटता ने यूरोप और यूरेशिया में अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती दी है। सीरिया में विरोधी पक्षों के प्रति रूस के समर्थन से अमेरिका के साथ उसका टकराव बढ़ गया है। ईरान और तुर्की के साथ उसने यह सुनिश्चित किया कि अमेरिका सीरिया में सत्ता परिवर्तन को लागू नहीं कर पाएगा। अमेरिका अब सीरिया से हाथ खींचना चाहता है, क्योंकि उसे वहां अपना भविष्य नहीं दिख रहा। रूस ने क्रीमिया में पीछे हटने से इन्कार कर दिया है, जो पश्चिम के लिए चुनौती है।


चीन ने बढ़ती आर्थिक ताकत के जरिये अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती दी है। इसने अमेरिका को चीन और रूस को अपना विरोधी मानने के लिए विवश किया है। अमेरिका की ताजा कार्रवाई ने रूस और चीन को पहले से कहीं ज्यादा करीब ला दिया है। इससे नया शीत युद्ध शुरू हो गया है, जिसके एक ओर अमेरिका है, तो दूसरी ओर रूस और चीन हैं। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा पर मॉस्को में हुए शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सम्मेलन में चीन के नए रक्षा मंत्री ने कहा कि चीन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के प्रति रूस के साथ अपनी साझा चिंता और साझा स्थिति जाहिर करने के लिए तैयार है। यह बयान बताता है कि पश्चिमी देशों की कार्रवाई ने दो शक्तिशाली राष्ट्रों को एक-दूसरे के करीब ला दिया है, जो कभी एक-दूसरे पर संदेह करते थे।


इस समय धरती पर दो सर्वाधिक शक्तिशाली नेता हैं-पुतिन और शी जिनपिंग, दोनों की अपने राष्ट्रों पर गहरी पकड़ है और उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं है। दोनों सैन्य दृष्टि से ताकतवर राष्ट्र हैं। पश्चिम को चुनौती देने के लिए उनके हाथ मिलाने से वैश्विक संतुलन बदल सकता है। इस दलदल में भारत और पाकिस्तान फंसे हैं। पाकिस्तान तो पहले से ही चीन की कठपुतली है, जो हर चीज के लिए चीन पर निर्भर है, खासकर तब, जब अमेरिका उसे अपमानित करता है और आरोप लगाता है। ऐसे में स्वभाविक है कि वह ऐसे किसी गठबंधन में घुसने की कोशिश करेगा, जो अमेरिका को चुनौती देगा, ताकि अमेरिकी कार्रवाई से वह अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सके।


पाकिस्तान और अमेरिका के बीच बढ़ती दूरी से रूस वाकिफ है और तालिबान पर पाकिस्तान के प्रभाव के कारण उसने तालिबान के साथ भी रिश्ता बढ़ाया है। दोनों देशों ने संयुक्त सैन्य अभ्यास किया और कूटनीतिक संबंधों को आगे बढ़ाया है। भारत के आग्रह के खिलाफ जाकर रूस ने पाकिस्तान को कुछ एमआई-35 हेलिकॉप्टर भी बेचे। भारत अमेरिका से करीबी बढ़ा रहा है, हालांकि इसने रूस के साथ राजनयिक संबंध और हथियारों की खरीद जारी रखी है। पर स्पष्ट रूप से रूस भारत से दूर जा रहा है और चीन व पाकिस्तान से करीबी बढ़ा रहा है। हालांकि भारत ने स्क्रीपल हमले के मामले पर संयुक्त राष्ट्र में मतदान में हिस्सा नहीं लिया, पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। भारत के विरोधी चीन और पाकिस्तान रूस के करीबी सहयोगी हैं।


इस तरह उभरता हुआ रूस-चीन-पाकिस्तान का अक्ष न केवल अमेरिका और पश्चिमी देशों को प्रभावित करेगा, बल्कि भारत पर भी असर डालेगा, क्योंकि इससे भारत का राजनयिक समर्थन आधार घट जाएगा। यह तिकड़ी भविष्य में वैश्विक मुद्दों को भी प्रभावित करेगी, जिसमें पश्चिम एशिया, उत्तर कोरिया और अफगानिस्तान में चल रहे संकट का समाधान शामिल है। इस तिकड़ी से अमेरिका को सैन्य, कूटनीतिक और आर्थिक चुनौती मिलेगी। भारत रूस से किसी भी समर्थन की उम्मीद नहीं कर सकता है। भारत को दीर्घकाल के लिए अपनी राजनयिक रणनीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।


(सौजन्य – अमर उजाला)


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