Thursday 11 January 2018

भारत में विदेश निवेश (FDI in India): फायदा या नुकसान

पक्ष-

विकास दर में तेजी लाने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करना केंद्र सरकार की प्राथमिकता है। सरकार की कमान संभालने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के तमाम संपन्न देशों की यात्राएं कीं और वहां बसे भारतीयों का यहां आकर कारोबार शुरू करने के लिए आह्वान किया। विदेशी कंपनियों के कारोबार में आने वाली रुकावटों को दूर करने का भी प्रयास किया।

केंद्र सरकार ने साहसी कदम उठाया है। जिस समय भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर कुछ हलकों में चिंताएं जताई जा रही थीं, तब उसके ताजा फैसलों को मास्टरस्ट्रोक कहा जा सकता है। इससे दुनियाभर के निवेशकों में सकारात्मक संदेश जाएगा। गौरतलब है कि ये कदम उस समय उठाया गया है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्विट्जरलैंड के शहर दावोस में होने वाली वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की सालाना बैठक में जाने की तैयारी में हैं। मोदी वहां 23 जनवरी को दुनिया की मशहूर कंपनियों के प्रमुखों को संबोधित करेंगे। साफ है, उसके पहले भारत में बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश का मार्ग प्रशस्त किया गया है।

अब सिंगल ब्रांड रिटेल में भी विदेशी कंपनियां ऑटोमेटिक रूट से शत-प्रतिशत निवेश कर सकेंगी। यानी ऐसे निवेश के लिए उन्हें पूर्व-अनुमति की जरूरत नहीं होगी। साथ ही ऐसी निवेशक कंपनियों के लिए भारत के घरेलू बाजार से 30 फीसदी खरीदारी करने की शर्त को आसान बनाया गया है। शर्तों में फेरबदल के बाद उम्मीद है कि ज्यादा-से-ज्यादा विदेशी कंपनियां भारत में कारोबार के लिए प्रोत्साहित होंगी। सिंगल ब्रांड के कारोबार में एच एंड एम, गैप और आइकिया जैसी कंपनियां पहले ही भारतीय बाजार में आ चुकी हैं। खबरों के मुताबिक 50 से भी ज्यादा कंपनियां इस क्षेत्र में आने को तैयार हैं। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने की नरेंद्र मोदी सरकार की नीति काफी सफल रही है। भारत में 2013-14 में 36.05 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया था, जो 2016-17 में 60.08 अरब डॉलर तक पहुंच गया। अब चूंकि एनडीए सरकार ने फिर निवेशकों के अनुकूल निर्णय लिया है, तो ऐसे निवेश में और बढ़ोतरी हो सकती है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। विदेशी कंपनियां अपने साथ नई तकनीक और कार्यशैली भी लेकर आती हैं। इसका लाभ आम उपभोक्ता को मिलता है।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा दिए बगैर विकास योजनाओं को गति प्रदान नहीं की जा सकती। स्मार्ट सिटी बनाने, स्वच्छ भारत और वस्तुओं की कीमतें तर्कसंगत बनाने का सपना अधूरा रह जाएगा। माना जाता है कि बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से कीमतों को संतुलित बनाने में सफलता मिलती है। दूरसंचार कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा के नतीजे सामने हैं। इसी तरह प्रतिस्पर्द्धा से खुदरा वस्तुओं की कीमतों में कमी लाने की उम्मीद बनती है। विदेशी कंपनियों के आने से विमानन के क्षेत्र में भी प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी।

देश के व्यापारी समुदाय में सरकार के ऐसे निर्णयों से कुछ चिंता पैदा होना स्वाभाविक है। सरकार को इसे दूर करने के लिए उनके संगठनों से संवाद कायम करना चाहिए। वैसे अतीत का अनुभव यही है कि विदेशी निवेश को लेकर जताई गई अधिकांश चिंताएं निराधार साबित होती हैं।

सरकार ने कंस्ट्रक्शन डेवलपमेंट क्षेत्र में भी ऑटोमेटिक रूट से 100 फीसदी विदेशी निवेश की छूट दे दी है। इसके अलावा एक बड़ा फैसला एयर इंडिया में विदेशी कंपनियों को 49 प्रतिशत तक निवेश की हरी झंडी देना है, हालांकि इसके लिए सरकार की पूर्व अनुमति जरूरी होगी। एयर इंडिया में विनिवेश का फैसला सरकार पहले ही ले चुकी थी। कई बेलआउट पैकेज के बावजूद अपने पैरों पर खड़ा रहने में विफल रही इस एयरलाइन में निजी क्षेत्र को हिस्सेदारी मिले, इस पर अब लगभग आम-सहमति बन चुकी है। अब चूंकि विदेशी कंपनियां भी हिस्सेदारी हासिल कर सकेंगी, तो उम्मीद की जानी चाहिए कि एयर इंडिया के प्रबंधन को अधिक पेशेवर बनाना संभव हो सकेगा। कुल मिलाकर यह कहने का आधार बनता है कि अर्थव्यवस्था को गति देना और देश को समृद्ध बनाना मोदी सरकार की शीर्ष प्राथमिकता बनी हुई है। उस दिशा में अब उसने कुछ और साहसी फैसले लिए हैं।

चुनौतियां-

सरकार के साढ़े तीन साल बीत जाने के बाद भी अपेक्षित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नहीं जुटाया जा सका। नोटबंदी और जीएसटी के बाद विकास दर की रफ्तार सुस्त पड़ गई है। जबकि सरकार का लक्ष्य इसे आठ फीसद तक पहुंचाना है, पर वह संभव नहीं दिख रहा। महंगाई पर काबू पाना भी चुनौती बना हुआ है। ऐसे में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के मकसद से केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विदेशी कंपनियों के लिए एकल ब्रांड खुदरा कारोबार और भवन निर्माण के क्षेत्र में सौ फीसद निवेश का रास्ता खोल दिया है। खुदरा कारोबार में अभी तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा उनचास फीसद थी। उससे अधिक के लिए सरकार से इजाजत लेनी पड़ती थी। इसके अलावा विमानन क्षेत्र में भी उनचास फीसद निवेश की छूट मिल गई है। माना जा रहा है कि इससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की दर में बढ़ोतरी होगी। मगर इससे कितना प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ेगा, जिससे दूसरे क्षेत्रों की सुस्ती मिटाने में मदद मिलेगी, कहना मुश्किल है।

कुछ मजदूर संगठनों ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। उनका मानना है कि इससे देसी कंपनियों के कारोबार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उनका तर्क है कि भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का विरोध किया था, इसलिए भी यह फैसला असंगत जान पड़ता है।

भारत जैसे देशों के सामने बड़ी चुनौती अपने उत्पादों के लिए बाजार तलाशना है। उत्पादन के क्षेत्र में यहां संतोषजनक तरक्की दिखती है, पर निर्यात के मामले में स्थिति बहुत खराब है। विदेशी बाजार में अपने उत्पादों के लिए जगह बना पाना कठिन काम बना हुआ है। जबकि विदेशी कंपनियों ने हमारे बाजार का काफी हिस्सा छेंक रखा है। आयात की दर निर्यात के मुकाबले काफी अधिक है। ऐसे में खुदरा कारोबार में विदेशी कंपनियों के लिए सौ फीसद निवेश की छूट से बाजार में देसी कंपनियों और उत्पादकों के लिए और चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। कीमतें नियंत्रित करने के लिए विदेशी वस्तुओं से बाजार को पाट देना कोई अंतिम उपाय नहीं माना जाता। संतुलित विकास दर के लिए देसी कारोबार को बढ़ावा देना भी जरूरी होता है। पहले ही हमारे यहां छोटे और मंझोले कारोबार कठिनाइयों से गुजर रहे हैं। विदेशी कंपनियों के लिए निर्बाध रास्ता खोल देने से उनकी मुश्किलें और बढ़ेंगी। ऐसे में विदेशी के साथ-साथ देसी कंपनियों के लिए जगह बनाने के व्यावहारिक उपाय तलाशने की अपेक्षा स्वाभाविक है।

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