Friday, 26 January 2018

भारत-आसियान दोस्ती का नया दौर (India - ASEAN Relationship)

आसियान रिश्तों की रजत जयंती मनाने की तैयारी के बीच हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भारत के रिश्ते दो हजार वर्षों से भी अधिक पुराने हैं। इतिहास में स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं कि प्राचीन भारत और कंबोडिया, मलेशिया और थाईलैंड के बीच व्यापार हुआ करता था। इन प्राचीन संपर्कों ने दक्षिण-पूर्व एशियाई संस्कृति, परंपराओं और भाषाओं को प्रभावित किया। फिर चाहे वह कंबोडिया में अंकोरवाट मंदिर परिसर हो या इंडोनेशिया में बोरोबुदूर और प्रंबनन मंदिर या फिर मलेशिया के कई स्थल, इन सभी जगहों पर भारतीय हिंदू-बौद्ध प्रभाव की छाप साफ नजर आती है। इंडोनेशिया, म्यांमार व थाईलैंड सहित कई दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में रामायण को खासा महत्व दिया जाता है। सिंगापुर के मलय नाम की उत्पत्ति भी संस्कृत भाषा से ही हुई है, जिसका अर्थ होता है लॉयन सिटी यानी सिंह का शहर। भारत 1992 में आसियान की एक श्रेणी में संवाद साझेदार बना और 1995 में पूर्ण रूप से संवाद साझेदार

समय के साथ भारत-आसियान रिश्ते और परवान चढ़ते गए और 2012 में दोस्ती की बीसवीं वर्षगांठ के अवसर पर रणनीतिक साझेदारी में बदल गए। दोनों पक्ष आज आसियान के विभिन्न् राजनीतिक, सुरक्षात्मक, आर्थिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं पर साथ मिलकर काम कर रहे हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक्ट ईस्ट नीति में भी व्यापार, संपर्क और संस्कृति की तिकड़ी पर जोर दिया गया है। इस मंत्र के माध्यम से वह आसियान के साथ सक्रियता को और धार देना चाहते हैं जो हमारे बहुस्तरीय और व्यापक सहयोग को दर्शाता है। हमारे पास सहयोग के लिए लगभग 30 प्लेटफॉर्म हैं जिनमें एक वार्षिक शिखर सम्मेलन और सात मंत्रिस्तरीय संवाद मंच हैं। चाहे आसियान के नेतृत्व में आसियान क्षेत्रीय मंच हो या आसियान रक्षामंत्रियों का सम्मेलन या फिर पूर्वी एशिया सम्मेलन, भारत ने इन आयोजनों में हमेशा बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। समय के साथ दोनों पक्षों के बीच व्यापार में भी बहुत तेजी आई है। इसमें आसियान-भारत मुक्त व्यापार क्षेत्र यानी एआईएफटीए जैसे समझौते की अहम भूमिका रही है। आसियान-भारत व्यापार 1993 के 2.9 अरब डॉलर से उछलकर 2016 में 58.4 अरब डॉलर हो गया। सामाजिक, सांस्कृतिक मोर्चे पर भी आसियान-भारत छात्र विनिमय कार्यक्रम और दिल्ली डायलॉग ने दोनों पक्षों के बीच जनसंपर्क को और तेजी दी है। इन मंचों के माध्यम से हमारे युवा, अकादमिक और कारोबारी जगत के लोगों को एक-दूसरे से मुलाकात के दौरान सीखने-समझने का अवसर मिला है, जिससे रिश्ते और मजबूत हुए हैं।

आसियान-भारत संबंधों की रजत जयंती मनाने के लिए तमाम कार्यक्रम किए जा रहे हैं। हाल में सिंगापुर में आयोजित प्रवासी भारतीय दिवस में भारतवंशियों के योगदान को सराहा गया। भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में आसियान की भागीदारी से दोनों पक्षों की उत्सवधर्मिता चरम पर पहुंच रही है। गणतंत्र दिवस परेड हेतु मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रण आसियान नेताओं के लिए बहुत सम्मान की बात है।

भू-राजनीतिक अस्थिरता ने आसियान को भारत जैसे सहयोगी के साथ गलबहियां बढ़ाने की दिशा में नई ऊर्जा और नजरिया दिया है। कई अहम पैमानों पर भारत और आसियान की सोच भी एकसमान है। क्षेत्र में शांति और सुरक्षा के साथ ही खुली, संतुलित और समावेशी अवधारणा पर भी दोनों एकमत हैं। भारत की भौगोलिक स्थिति रणनीतिक रूप से बेहद अहम है। यह हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच कई प्रमुख समुद्री मार्गों के बीच स्थित है। ये समुद्री मार्ग तमाम आसियान देशों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग भी हैं। ऐसे में व्यापार को सुगम बनाए रखने के लिए इन समुद्री मार्गों की सुरक्षा दोनों पक्षों के लिए समान रूप से आवश्यक है।

आसियान और भारत की कुल आबादी करीब 180 करोड़ है, जो दुनिया की एक चौथाई आबादी के बराबर है। हमारा सम्मिलित जीडीपी भी 4.5 लाख करोड़ डॉलर से अधिक है। वर्ष 2025 तक भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बन जाएगा तो दक्षिण-पूर्व एशिया में भी मध्यवर्ग का दायरा दोगुना बढ़कर 16.3 करोड़ होने का अनुमान है। दोनों पक्षों को जनसांख्यिकीय लाभांश का भी फायदा हासिल है, क्योंकि इनकी अधिकांश आबादी युवा है। आसियान व भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं की मांग भी तीव्र गति से बढ़ रही है जिससे डिजिटल अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ सकती है। दोनों पक्षों में इतनी अनुकूलता होने के बावजूद संबंधों को नया आयाम देने के लिए अभी भी काफी गुंजाइश है। आसियान के विदेशी व्यापार में भारत की हिस्सेदारी महज 2.6 फीसदी है जिसे और बढ़ाया जा सकता है।

परस्पर लाभ के लिए तीन सुझाव देना चाहूंगा। पहला यह कि व्यापार और निवेश को और गति देने के लिए भारत और आसियान को दोगुनी गति से प्रयास करने चाहिए। हमें मुक्त व्यापार सहित मौजूदा रास्तों को समय रहते सुधारने के साथ उन्हें प्रासंगिक बनाए रखना होगा। मौजूदा एआईएफटीए से भी बढ़कर उच्च स्तरीय क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी यानी आरसीईपी जैसी पहल की ओर कदम बढ़ाने होंगे। इससे ऐसे एकीकृत एशियाई बाजार का निर्माण होगा जिसमें दुनिया की लगभग आधी आबादी और एक तिहाई जीडीपी शामिल होगी। दोनों ओर से नियम-कानूनों को सुसंगत बनाना होगा और भारत की एक्ट ईस्ट नीति को सफल बनाने के साथ ही क्षेत्र में निर्यात बढ़ाने के मकसद से मेक इन इंडिया को भी हरसंभव मदद देना होगी।

दूसरा सुझाव यह है कि जल, थल और वायु परिवहन के मोर्चे पर सुधार हो। इससे हमारी जनता को बहुत फायदा होगा। इस दिशा में भारत के प्रयास सराहनीय हैं। वह भारत-म्यांमार-थाईलैंड हाईवे के विस्तार के साथ ही आसियान के साथ बेहतर कनेक्टिविटी के लिए बुनियादी ढांचा विकास हेतु एक अरब डॉलर की राशि के लिए सहमत हुआ है। तीसरा सुझाव डिजिटल कनेक्टिविटी सहयोग का है। यह एक महत्वपूर्ण पहलू है जो बेहतर भविष्य की इबारत रखेगा। भारत में आधार से जुड़ा तंत्र नए अवसर तैयार कर रहा है।

साझेदारी के लिए हमें नित नए आयामों की तलाश में जुटे रहना चाहिए। आसियान का अध्यक्ष होने के नाते सिंगापुर का एक लक्ष्य आसियान स्मार्ट सिटी नेटवर्क तैयार करना भी है, जिसमें भारत हमारा स्वाभाविक साझेदार बन जाता है। भारत ने 100 स्मार्ट सिटी विकसित करने का लक्ष्य तय किया है। एक शहरी-राष्ट्र होने के नाते हम अपने अनुभव से इसमें भारत की पूरी मदद करेंगे। आसियान का अध्यक्ष होने के नाते सिंगापुर भारत के साथ रिश्तों को प्रगाढ़ करने के लिए प्रतिबद्ध है। अगर दोनों पक्ष अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जुड़ाव से मौजूदा चुनौतियों का समाधान निकालकर भविष्य के लिए बेहतर बुनियाद रखते हैं तो हमारी आने वाली पीढ़ियां ही इससे सबसे अधिक लाभान्वित होंगी।

While we commemorate 25 years of Asean-India relations, India’s ties with southeast Asia date back more than 2,000 years. Ancient trade between India and countries such as Cambodia, Malaysia and Thailand is well-documented. Southeast Asian cultures, traditions and languages have been profoundly influenced by these early linkages. We see Indic Hindu-Buddhist influences in historical sites such as the Angkor Temple Complex near Siem Reap in Cambodia, the Borobudor and Prambanan temples near Yogyakarta in Indonesia, and the ancient candis in Kedah in Malaysia. The Ramayana is embedded in many southeast Asian cultures, including in Indonesia, Myanmar and Thailand. Singapore’s Malay name is Singapura, derived from Sanskrit and meaning ‘lion city’.

Singapore has always advocated India’s inclusion in the Asean community. India became an Asean Sectoral Dialogue Partner in 1992, a full Asean Dialogue Partner in 1995, and participated in the East Asia Summits (EAS) from 2005. The EAS is a key component of an open, inclusive and robust regional architecture, and the region’s main strategic leaders-led forum.
Asean-India relations were further elevated to a strategic partner­ship in 2012, the 20th anniversary of Asean-India relations. Today, Asean and India enjoy multi-faceted cooperation across Asean’s political-security, economic and socio-cultural pillars. Prime Minister Narendra Modi’s ‘Act East’ policy and 3-C (Commerce, Connectivity, Culture) formula for strengthening engagement with ASEAN speaks to our broad-based cooperation. We have around 30 platforms for cooperation, including an annual Leaders’ Summit and seven Ministerial Dialogues. India has participated actively in ASEAN-led platforms including the ASEAN Regional Forum, the ASEAN Defence Ministers’ Meeting Plus, and the East Asia Summit.
With the ASEAN-India Free Trade Area (AIFTA), ASEAN-India trade has risen steadily from $2.9 billion in 1993 to $58.4 billion in 2016. On the socio-cultural front, programmes like the ASEAN-India Students Exchange Programmes and the annual Delhi Dialogue foster closer people-to-people relations. Through these platforms, our youth, academics and businessmen get to meet, learn and deepen ties.
To mark this Silver Jubilee of ASEAN-India relations, both sides have held many commemorative activities. The recent Pravasi Bharatiya Divas in Singapore recognised the contributions of the Indian diaspora. Today’s ASEAN-India Commemorative Summit marks the culmina­tion of these celebrations. It is an honour for all the ASEAN leaders to be in New Delhi for this occasion. ASEAN leaders are also deeply honoured to be invited as chief guests at tomorrow’s 69th Republic Day Parade.
Major global trends are reshaping the strategic outlook, presenting both challenges and opportunities. The strategic balance is shifting. Demographic, cultural and political changes are underway in many parts of the world. The consensus on globalisation and free trade is fraying, but the Asian story continues to be a positive one. We need to push on with economic integration. We must also be resolute in dealing with emerging transboundary challenges, including terrorism, cybercrime and climate change.
This geopolitical uncertainty gives new impetus to ASEAN’s cooperation with key partners like India. ASEAN and India share common interests in peace and security in the region, and an open, balanced and inclusive regional architecture. India is located strategically along major sea-lanes from the Indian Ocean to the Pacific. These sea lanes are also vital trade routes for many ASEAN member states. Both sides share an interest in preserving these vital maritime conduits of trade.
ASEAN and India’s combined population of 1.8 billion represents one quarter of the world’s population. Our combined GDP exceeds $4.5 trillion. By 2025, India’s consumer market is expected to become the fifth largest in the world, while in southeast Asia middle-class house­holds will double to 163 million. Both regions are also experiencing a demographic dividend – 60% of ASEAN’s population is below 35 years old, while India is projected to be the world’s youngest country with an average age of 29 by 2020. ASEAN and India also have fast-growing internet user bases, which will help us grow the digital economy. Against this backdrop, we still have much scope to grow our ties – India accounted for only 2.6% of Asean’s external trade in 2016.
May I suggest three promising areas of mutually beneficial collaboration.
First, ASEAN and India should redouble efforts to promote trade and investment. We need to keep existing pathways up to date and relevant, including the AIFTA. We should work together to conclude a high quality Regional Comprehensive Economic Partnership (RCEP), surpassing the existing AIFTA. This would create an integrated Asian market comprising nearly half the world’s population and a third of the world’s GDP. Stream­lining rules and regulations will stimulate investments in both directions, complement India’s ‘Act East’ policy and facilitate ‘Made in India’ exports to the region.
Second, our peoples will benefit greatly from greater land, air and maritime connectivity. We appreciate India’s efforts to improve land connectivity, including the extension of the trilateral India-Myanmar-Thailand Highway, and India’s $1 billion line of credit to promote infrastructure connectivity with ASEAN. We look forward to working closely with India to boost our physical connectivity, including by expeditiously concluding the ASEAN-India Air Transport Agreement. This will enhance people-to-people flows across the region and help both Indian and ASEAN carriers tap new and emerging markets, especially for business, investment and tourism.
Digital connectivity is another important area of cooperation, and can shape people-to-people connections for the future. India’s Aadhaar system creates many new opportunities, for instance, to harmonise our Fintech platforms or connect e-payment systems.
Finally, we continue to look for new synergies. One objective of Singapore’s chairmanship is to develop an ASEAN Smart Cities Network, and here Singapore and India are natural partners. India is rapidly urbanising and has set itself a goal of establishing 100 smart cities. Singapore, an urbanised city-state, is ready to partner India on this journey and help develop urban solutions based on our own experience. Andhra Pradesh’s new capital city of Amaravati is one example.
As ASEAN chair, Singapore is committed to deepening ASEAN-India ties. If both sides use our historical and cultural links to tackle today’s challenges and build bridges for the future, our youth and next generation stand to gain the most.

(Lee Hsien Loong,
Prime Minister of Singapore)

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