Friday, 29 September 2017

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए)

International Solar Alliance (ISA)

आईएसए की स्‍थापना पेरिस घोषणापत्र के तहत हुई है। भारत ने आईएसए कोष के लिए 175 करोड़ रुपये का योगदान दिया है और आईएसए सचिवालय की लागत को शुरुआती पांच वर्षों में पूरा करने की पेशकश की है। आईएसए एक भारतीय पहल है जिसका शुभारंभ भारत के प्रधानमंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति ने 30 नवंबर 2015 को पेरिस में सीओपी -21 के मौके पर किया था।

यह संगठन कर्कमकर रेखा के बीच स्थित 121 राष्ट्रों को एक मंच पर लाएगा। ऐसे राष्ट्रों में धूप की उपलब्धता बहुलता में है। इस संगठन में ये सभी देश सौर ऊर्जा के क्षेत्र में मिलकर काम करेंगे। इस प्रयास को वैश्विक स्तर पर ऊर्जा परिदृश्य में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है।

आईएसए ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक ऊर्जा पहुंच को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी विकास एवं इसके लिए आवश्यक निवेश को गति देने के लिए संयुक्त प्रयास का साधन है।

इस संगठन का अंतरिम सचिवालय राष्ट्रीय सौर उर्जा संस्थान, ग्वालपहाड़ी, गुड़गांव में बनाया गया है। इसका उद्घाटन 25 जनवरी 2016 को हुआ। मुख्यालय के निर्माण हेतु भारत सरकार ने राष्ट्रीय सौर उर्जा संस्थान कैंपस के अंदर पांच एकड़ जमीन आवंटित की है।

15 देशों की संपुष्टि मिलने के साथ ही आईएसए संधि आधारित अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन बन जाएगा।

विश्व सूचियों में भारत का नवीनतम स्थान

विश्व परमाणु उद्योग स्थिति रिपोर्ट 2017 के अनुसार परमाणु रिएक्टरों को स्थापित करने में भारत विश्व में इस स्थान पर है – तृतीय

समकालीन व्यक्ति विशेष (Contemporary Famous Personalities)

अंतरराष्ट्रीय

इस मैगजीन के संस्थापक ह्यूग हेफनर का निधन हो गया है - प्लेबॉय


राष्ट्रीय

इस महिला आइपीएस ने दुनिया की आठवीं और एशिया की दूसरी सबसे ऊंची चोटी माउंट मैनास्लु (नेपाल)पर तिरंगा फहराया है - अर्पणा कुमार

पांच बार की इस विश्व चैंपियन और ओलंपिक कांस्य पदक विजेता को इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन (एआईबीए) में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) एथलीट फोरम के प्रतिनिधि के रूप में चुना गया है - एम सी मैरी कॉम

कुलदीप यादव से पहले इन दो खिलाडियों ने भारत की ओर से खेलते हुए एक दिवसीय क्रिकेट में हैट-ट्रिक ली है - चेतन शर्मा, कपिल देव


परीक्षापयोगी महत्वपूर्ण आँकड़े

वर्ष 2015-16 में पर्यटन क्षेत्र का जीडीपी में  का योगदान  - 9.6 प्रतिशत

Thursday, 28 September 2017

पुलिस बलों के आधुनिकीकरण की वृहद अम्ब्रेला योजना

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘पुलिस बलों के आधुनिकीकरण की वृहद अम्ब्रेला योजना’ को वर्ष 2017-18 से वर्ष 2019-20 के लिए मंजूरी प्रदान की।

प्रमुख तथ्य:

यह देश में अब तक की सबसे बड़ी आंतरिक सुरक्षा योजना है। तीन वर्ष की अवधि में इसके लिए 25,060 करोड़ रुपए व्यय करने का प्रावधान है।

इस अम्ब्रेला योजना के तहत 3 नये संस्थानों की स्थापना का भी प्रावधान है;

1. अमरावती, आंध्र प्रदेश में अत्याधुनिक विधि विज्ञान प्रयोगशाला
 
2. जयपुर में सरदार पटेल वैश्विक सुरक्षा केन्द्र का उन्नयन,आतंकवाद निरोधी एवं आतंकवादी गतिविधि रोकथाम केन्द्र

3. गांधीनगर, गुजरात में विधि विज्ञान विश्वविद्यालय

इस योजना के तहत आंतरिक सुरक्षा, कानून-व्यवस्था, महिला सुरक्षा, आधुनिक हथियारों की उपलब्धता, पुलिस बलों की गतिशीलता, साजो-सामान का सहयोग, किराए पर हेलिकॉप्टर, पुलिस वायरलेस का उन्नयन, राष्ट्रीय सेटेलाइट नेटवर्क, सीसीटीएनएस परियोजना (Project CCTNS) आदि के लिए विशेष प्रावधान शामिल हैं।

इस योजना के कार्यान्वयन से उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर क्षेत्रों जैसे विभिन्न राज्यों में चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना करने में सरकार को मदद मिलेगी। इस योजना से जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए विकास में आने वाले अवरोधों से पार पाया जा सकेगा और उसके साथ ही चुनौतियों से प्रभावी ढंग से लड़ने में मदद मिलेगी।

फारेसिंक विज्ञान प्रयोगशालाओं, संस्थानों एवं उनमें उपलब्ध उपकरणों सहित पुलिस इंफ्रास्ट्रक्चर के उन्नयन के लिए विशेष परियोजना/कार्यक्रमों के लिहाज से भी राज्यों को सहायता के रूप में विशेष नई पहलों की शुरूआत की गई है ताकि आपराधिक न्याय प्रणाली की कमियों को दूर किया जा सके।

महत्वपूर्ण आपरेशन/एक्सरसाइज/युद्ध अभ्यास

हैदराबाद स्थित इस जलाशय के कि किनारे पर बहु-एजेंसी एक्सरसाइजप्रलय सहायं’ आयोजित किया गया – हुसैन सागर जलाशय

आपरेशन लीपफ्राग - बम्बई हाई में पेट्रोलियम की खोज

Friday, 15 September 2017

पुस्तक एवं लेखक

"अनस्टॉपबल: माई लाइफ सो फार" पुस्तक किसकी आत्मकथा है?
मारिया शारापोवा

चकमा, हाजोंग शरणार्थियों को नागरिकता 

चकमा, हाजोंग शरणार्थी:

‘चकमा’ और ‘हाजोंग’ मूल रूप से तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र के निवासी हैं, जिन्हें 1960 के दशक में ‘कप्ताई बांध परियोजना’ में उनकी ज़मीन जलमग्न होने के कारण पलायन करना पड़ा था। चकमा बौद्ध हैं और हाजोंग हिंदू समुदाय के लोग हैं।

इन्हें उस दौरान पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था, अतः वे तत्कालीन असम के लुशाई जिले (वर्तमान में यह मिजोरम में हैं) से होकर भारत में प्रवेश करने लगे एवं यहाँ शरणार्थियों के रूप में रहने लगे।

कालांतर में चकमा समुदाय को असम में अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा प्रदान किया गया वहीं हाजोंग समुदाय को असम और मेघालय में अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिया गया। वर्तमान में पूर्वोत्तर राज्यों की सरकारें उन्हें बुनियादी सुविधाएँ प्रदान कर रही हैं लेकिन उन्हें नागरिकता और भूमि-अधिकार नहीं प्रदान किया गया। 1964-69 में इनकी आबादी करीब 5000 थी। अब इन शरणार्थियों की आबादी 100,000 हो गई है।

केंद्र सरकार ने सभी चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने का निर्णय लिया है, लेकिन उन्हें पूर्वोत्तर के मूल निवासियों जैसा अधिकार नहीं दिया जाएगा। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने 13 सितम्बर 2017 को यह जानकारी दी। पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए चकमा और हाजोंग शरणार्थी अरुणाचल प्रदेश में रह रहे हैं।

चकमा-हाजोंग शरणार्थी मुद्दे पर एक उच्चस्तरीय बैठक में चर्चा हुई। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की ओर से बुलाई गई बैठक में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू, केंद्रीय गृह राज्यमंत्री रिजिजू और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल एवं अन्य ने हिस्सा लिया।

किरण रिजिजू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 2015 के आदेश का पालन करने के लिए बीच का रास्ता अपनाया जाएगा। शीर्ष अदालत ने चकमा-हाजोंग को नागरिकता प्रदान करने का आदेश दिया था। नागरिकता देने में स्थानीय लोगों के अधिकारों का हनन नहीं किया जाएगा। चकमा-हाजोंग समुदाय के लोग 1964 से अरुणाचल प्रदेश में हैं।

उन्हें एसटी का दर्जा नहीं दिया जाएगा और मूल निवासियों के अधिकारों का घालमेल नहीं होगा। हालांकि उन्हें इनर लाइन परमिट दिया जाएगा। अरुणाचल प्रदेश में गैर स्थानीय लोगों को यात्रा और काम करने के लिए यह परमिट जरूरी है।

Opposition to citizenship

Several organisations and civil society in Arunachal Pradesh are opposing granting citizenship to refugees saying it would change demography of state and would reduce indigenous tribal communities to minority and deprive them of opportunities. The Union Government is trying to find workable solution by proposing that these refugees will not be given rights to own land, which are exclusively enjoyed by Scheduled Tribes in Arunachal Pradesh. However, Government may be given Inner Line permits (required for non-locals to travel and work in three states Arunachal Pradesh, Mizoram and Nagaland).

Thursday, 14 September 2017

Chennai - Vladivostok sea route

India is planning to launch major connectivity initiative, connecting Chennai with key Russian port Vladivostok via sea route with an aim to harness natural resources from Northeast Asia and Western Pacific region. The region has wealth of natural resources such as timber, mineral resources (coal & diamonds) and precious metal deposits (gold, platinum, tin and tungsten) and oil and natural gas.

The Chennai-Vladivostok sea route will enable to transfer cargo between Chennai and Vladivostok in 24 days in comparison to over 40 days currently taken to transport goods from India to Far East Russia via Europe.

The proposed maritime route can be transformed into corridor that could juxtapose with Indo-Japan Pacific to Indian Ocean Corridor to counter China’s Maritime Silk Route (MSR) under Border Road Initiative (BRI) which connect entire South East Asia through road, shipping and rail links.

Russia is sensitive to growing Chinese presence in Russia’s Far-eastern region particularly increasing population from China which are settling there. It fears that this pattern could change demographics of Far-east Russia. The growing presence of other countries including India will help to bring balance China’s presence in far east region.

Background

India was first country to establish resident Consulate in Vladivostok in 1992. India’s current engagement with region is limited to isolated pockets such as Irkut Corporation in Irkutsk where Mig and Sukhoi aircraft are built and over $6 billion worth of investments by ONGC Visesh Limited in Sakhalin 1 project.

प्रमुख राष्ट्रीय संगठन/संस्थान एवं उनके मुख्यालय


भारत की पहली उन्नत होम्योपैथी वायरोलॉजी प्रयोगशाला -  कोलकाता

High Speed Rail Institute to be set up at   -  Vadodara (Gujarat)

प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संगठन एवं उनके मुख्यालय

इंटरनेशनल एस्ट्रोनोमिकल यूनियन (अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ) -  पेरिस, फ़्रांस (केंद्रीय सचिवालय)

अंतरिक्ष में कचरे का खतरा


विज्ञान की प्रगति के साथ एक के बाद एक देश अंतरिक्ष में अपने उपग्रह भेजने लगे हैं। इसके साथ ही वहां कूड़ा कचरा भी बढ़ने लगा है। इस समय कचरे का जो घनत्व है, उससे पांच साल में एक बार इन ऑर्बिट टक्कर होने की संभावना है। लेकिन जर्मनी में ईएसए के एक सम्मेलन में पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार कचरे के बढ़ने से इस तरह की दुर्घटनाओं की संभावना बहुत बढ़ जाएगी।

इस शोध रिपोर्ट के अनुसार हर साल अंतरिक्ष से पांच से दस बड़ी वस्तुओं को हटाने की जरूरत है ताकि टक्कर के खतरे को कम करने के अलावा उससे पैदा होने वाले छोटे छोटे टुकड़ों के अंतरिक्ष में फैलने के जोखिम को भी कम किया जा सके। ये टुकड़े ज्यादा नुकसान कर सकते हैं।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 10 सेंटीमीटर से बड़े 29,000 टुकड़े पृथ्वी का चक्कर काट रहे हैं। ये टुकड़े 25,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की कक्षा में घूम रहे हैं जो यात्री विमानों की रफ्तार से 40 गुना ज्यादा है। इस रफ्तार पर छोटे से छोटा टुकड़ा भी विमान या उपग्रह जैसी चीज को नष्ट कर सकता है।

घूम रहे कचरे में इंसान द्वारा अंतरिक्ष में छोड़कर आया गया कचरा, रॉकेट लॉन्चरों के टुकड़े और निष्क्रिय पड़े उपग्रह और पिछली टक्करों में टूटे कल पुर्जे हैं। अंतरिक्ष के कचरे पर चल रही रिसर्च में विश्व भर की अंतरिक्ष एजेंसियां सहयोग कर रही हैं। यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने 2012 में क्लीन स्पेस मुहिम शुरू की थी, जिसका लक्ष्य अंतरिक्ष से कचरे को हटाने और सुरक्षा बढ़ाने के लिए तकनीकी का विकास करना था।

हाल ही में जापान का अंतरिक्ष के कचरे को साफ करने का एक प्रयोग विफल हो चुका है। जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी के वैज्ञानिकों ने एक उपकरण से प्रयोग किया था। मछली पकड़ने वाले जाल बनाने वाली कंपनी की मदद से एक जाल बनाया गया था। वैज्ञानिक इस इलेक्ट्रोडायनमिक जाल की मदद से कूडे की गति को धीमा करके उसे निचली कक्षा में लाना चाहते थे। उम्मीद यह की जा रही थी कि पांच दशक की मानवीय गतिविधियों से अंतरिक्ष में जो भी कचरा जमा हुआ है उसे धीरे धीरे नीचे लाया जाए। जब वह पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करेगा तो जलकर नष्ट हो जाएगा।

अमेरिकी वैज्ञानिक अंतरिक्ष में मौजूद कचरे और मलबे को साफ करने के लिए विशेष यान विकसित करने में जुटे हैं। बाल से भी पतले इस यान में लगे अत्याधुनिक उपकरण अंतरिक्ष के कचरे को नष्ट करने में सक्षम होंगे।

कृत्रिम उपग्रह और विभिन्न मिशन पर गए कुछ यान अभियान पूरा होने के बाद यूं ही पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगा रहे हैं। ये अंतरिक्ष यात्रियों और सेटेलाइट के लिए बेहद खतरनाक हैं। एयरोस्पेस कॉरपोरेशन इससे निपटने के लिए ब्रेने क्राफ्ट नामक नया यान विकसित कर रहा है। लचीले यान की मोटाई बाल से भी आधी है।

उपादान भुगतान अधिनियम, 1972 (Payment of Gratuity Act)

ग्रेच्युटी अधिनियम 1972

दस अथवा अधिक लोगों को नियोजित करने वाली स्‍थापनाओं के लिए उपादान भुगतान अधिनियम, 1972 लागू है। इस अधिनियम को लागू करने का मुख्‍य उद्देश्‍य है - सेवानिवृति के बाद कामगारों की सामाजिक सुरक्षा, चाहे सेवानिवृति की नियमावली के परिणामस्‍वरूप सेवानिवृति हुई हो अथवा शरीर के महत्‍वपूर्ण अंग के नाकाम होने से शारीरिक विकलांगता के कारण सेवानिवृति हुई हो।इसलिए उपादान भुगतान अधिनियम 1972, उद्योगों, कारखानों और स्‍थापनाओं में मजदूरी अर्जित करने वाली जनसंख्‍या के लिए एक महत्‍वपूर्ण सामाजिक सुरक्षा का विधान है।
अधिनियम के तहत उपादान राशि पर मौजूदा अधिकतम सीमा 10 लाख रूपये है। उपादान के संबंध में सीसीएस (पेंशन) नियमावली, 1972 के अधीन केंद्रीय कर्मचारियों के लिए भी समान प्रावधान हैं।
सातवां केंद्रीय वेतन आयोग लागू होने से पहले सीसीएस (पेंशन) नियमावली,1972 के अधीन अधिकतम सीमा 10 लाख रूपये थी। हालांकि सातवां केंद्रीय वेतन आयोग लागू होने से सरकारी कर्मचारियों के मामले में 1 जनवरी, 2016 से अधिकतम सीमा अब 20 लाख रूपये है।

चंद्रमा पर पानी का पहला वैश्विक मानचित्र

वैज्ञानिकों ने चंद्रमा की मिट्टी की सबसे ऊपरी सतह में मौजूद जल का पहला नक्शा तैयार किया है। भविष्य में चंद्रमा के अन्वेषण में यह फायदेमंद साबित होगा। यह नक्शा भारत के अंतरिक्ष यान चंद्रयान-1 पर लगे एक उपकरण की मदद से प्राप्त डेटा के आधार पर बनाया गया है।
साइंस एडवांसेस जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन का आधार वर्ष 2009 में चांद की मिट्टी में जल और संबंधित अणु हाइड्रॉक्सिल की शुरुआती खोज है। अमेरिका के ब्राउन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने नासा के मून मिनरलॉजी मैपर के जरिए जुटाए गए आंकड़ों का इस्तेमाल किया।
मैपर चंद्रयान-1 के साथ रवाना हुआ था और इसका काम यह पता लगाना था कि वैश्विक स्तर पर कितना पानी मौजूद है।विश्वविद्यालय में पीएचडी के पूर्व छात्र शुआई ली ने कहा, चांद की सतह पर लगभग हर जगह पानी की मौजूदगी के संकेत मिलते हैं, यह केवल धुव्रीय क्षेत्र तक सीमित नहीं है जैसा कि पहले रिपोर्ट में बताया गया था।

हिंदी दिवस


http://ravikdwivedi.blogspot.in/2014/09/httpsm.html?m=0


14 सितंबर 2017 को पूरे देश में हिंदी दिवस मनाया गया।
राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने हिंदी दिवस के अवसर पर नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में राजभाषा पुरस्कार प्रदान किये। उन्होंने 'लीला मोबाइल ऐप' का भी शुभारंभ किया।
पहली बार आधिकारिक रूप से वर्ष 1953 में हिन्दी दिवस मनाया गया था।
14 सितंबर 1949 में सबसे पहले हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला था। तब से हर साल इस दिन हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
संविधान सभा ने देवनागरी लिपी में लिखी हिंदी को अंग्रजों के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया था।


National Hindi Divas

Hindi Divas is celebrated to mark adaptation of Hindi language as the official language of India by the Constituent Assembly of India on 14 September 1949. The decision of using Hindi as official language was ratified by Constitution of India which came into effect on 26 January 1950. Under the Article 343 of Indian Constitution, Hindi written in Devanagri script was adopted as the official language. But presently, there are 2 official languages: Hindi and English.

Thursday, 7 September 2017

*Swaraj India supports the demand for greater transparency in UPSC*

NEW DELHI, Sep 7, 2016:

The newly formed political party Swaraj India has expressed disappointment at the refusal by the Union Public Service Commission (UPSC) to uphold high standards of transparency expected of this constitutional authority. It has extended support to the demand of a group of Civil Service aspirants to release the answer key immediately upon the completion of Preliminary Examination, as is the practice in some of the leading competitive examinations and among various state public service commissions.

Currently, the UPSC does not release the answer key for the Civil Service Preliminary Examination until all the three stages of the examination are completed, which effectively means that they release the answer keys after more than a year. By then, students have even finished writing the next year’s preliminary exam, thereby rendering the answer keys of the previous year’s exam irrelevant. Preliminary exam is of qualifying nature only and is thus a stand-alone exam to that extent. The marks of this stage has no effect whatsoever on the final merit of the UPSC Civil Services Examination. Clearly, holding up its answers or marks obtained by successful/unsuccessful candidates defies any rational basis.

It is particularly disappointing that despite a strict CIC ruling against this illogical practice of UPSC in the Mrunal case (File No: CIC/SM/answer 2012/001599), the commission continues to block any attempt to usher transparency.UPSC has claimed that “by divulging the information about the preliminary stage of examination before completion of the entire civil services examination (all three stages) could adversely affect the entire process on account of frivolous objections/representation from the unsuccessful candidates at the intermediary stage.”

This lack of transparency is significant, since many aspiring students have often asked troubling questions about the formulation of questions/answer keys. This year too, there have been many questions about the General Studies Paper-1 in the Civil Services (Prelims) Exam that had at least 4 ambiguous questions The UPSC has not bothered to acknowledge any goof-up in the exam let alone rectifying them or releasing any public clarifications thereof. The hapless students who have been wrongfully excluded are thereby left with no other option than to either suffer in silence or move the Court to seek justice.

Swaraj India National President Yogendra Yadav said, "Union Public Service Commission carries with it a mandate under Article 320(1) of the Constitution. Duty to conduct examinations, itself implies a duty to conduct them in a fair and transparent manner." 

Demanding a change in the culture of opacity at UPSC, party's Chief National Spokesperson Anupam said, "If other State Public Service Commissions are releasing the answer keys before Mains examination and are inviting objections/challenges against the answer key, what stops UPSC from following the same procedure? Why does UPSC hold the attitude that every objection or representation against them is frivolous and not genuine?"

He said that Swaraj India will take up the issue of lack of transparency in UPSC exams if the commission or the ruling government fails to address the genuine concerns of student community.

संघ लोक सेवा आयोग में पारदर्शिता की माँग का स्वराज इंडिया ने किया समर्थन

*स्वराज इंडिया*
*प्रेस नोट- 7 सितंबर 2017*

नई दिल्ली, 31 अगस्त 2016: नवगठित राजनीतिक पार्टी स्वराज इंडिया ने संघ लोक सेवा आयोग जैसे संवैधानिक संस्थान द्वारा पारदर्शिता के मानकों पर खरा नहीं उतरने पर अफ़सोस जताई है। पार्टी ने सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे प्रतियोगी छात्रों की इस माँग का समर्थन किया है कि प्रारंभिक परीक्षा के समापन के तुरंत बाद उत्तर कुंजी सार्वजनिक की जाए, जैसा कि अन्य प्रतियोगिता परीक्षाओं और राज्य लोक सेवा आयोग भी पालन कर रहे हैं।

संघ लोक सेवा आयोग प्रारंभिक परीक्षा के लिए उत्तर कुंजी तब तक जारी नहीं करती है जब तक कि तीनों चरण की परीक्षा पूरी न हो जाये। जिसका नतीजा यह होता है कि उत्तर कुंजी जारी होते होते एक वर्ष से अधिक समय बीत चुका होता है। मतलब उत्तर कुंजी तब मिलती है जब छात्रों ने अगले साल की प्रारंभिक परीक्षा भी लिख ली होती है। अकारण ऐसा विलंब उत्तर कुंजी को ही अप्रासंगिक बना देता है। यह भी बता दें कि प्रारंभिक परीक्षा में मिले अंकों का अंतिम वरीयता सूची में योगदान नहीं है इसलिए प्रतियोगियों के अंक या उत्तर कुंजी को रोक के रखने का कोई तर्क नहीं है।

आयोग की इस परंपरा के ख़िलाफ़ सीआईसी ने मृणाल मामले (फाइल नं: सीआईसी/एसएम/उत्तर 2012/001599) में एक कड़ा फ़ैसला सुनाया था। इसके बावजूद संघ लोक सेवा आयोग ने पारदर्शिता बहाल करने की कोशिशों पर रोक लगा रखी है। आयोग का कहना है कि "सिविल सेवा परीक्षा की सम्पूर्ण प्रक्रिया (सभी तीन चरणों) पूरी होने से पहले परीक्षा के प्रारंभिक चरण के बारे में जानकारी देने से, पूरी प्रक्रिया प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकती है।"

पारदर्शिता की यह कमी चिंताजनक है क्यूंकि कई प्रतियोगी छात्रों ने प्रश्न या उत्तर कुंजी के संबंध में सवाल किए हैं। इस साल भी, प्रारंभिक परीक्षा के जनरल स्टडीज़ पेपर 1 में कम से कम चार ऐसे प्रश्न थे जिनके उत्तर स्पष्ट नहीं हैं। किसी तरह की गलती को ठीक करना तो दूर, संघ लोक सेवा आयोग ने माना ही नहीं है कि कोई सवाल भी है। इसलिए जिन छात्रों को इसके कारण परीक्षा की प्रक्रिया से बाहर होना पड़ा, उनके पास चुप चाप अन्याय झेलने या अदालत का दरवाजा खटखटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

छात्रों के कई मुहीम का नेतृत्व कर चुके स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा, "संघ लोक सेवा आयोग को परीक्षा आयोजित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 320 (1) के तहत जनादेश मिला है। इस अनुच्छेद के अनुसार यूपीएससी का यह भी कर्तव्य है कि परीक्षाओं का संचालन एक ईमानदार और पारदर्शी तरीके से हो।"

यूपीसीसी परीक्षाओं में पारदर्शिता की घोर कमी बताते हुए पार्टी के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता अनुपम ने इस संस्कृति में बदलाव की मांग की है। उन्होंने कहा, "अगर भारत के अन्य राज्यों के लोक सेवा आयोग मुख्य परीक्षा से पहले उत्तर कुंजी और उत्तर कुंजी पर आपत्ति स्वीकार कर सकते हैं, तो  यूपीएससी इस प्रक्रिया का पालन करने से क्यों पीछे हट रही है? आयोग ऐसा क्यों सोचता है कि उनके खिलाफ हर आपत्ति या सवाल ही ग़लत या बचकाना है? आयोग के ऐसे तौर तरीके सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता या विश्वसनीयता के सिद्धांतों के खिलाफ है।"

अनुपम ने बताया कि केंद्र सरकार यदि छात्रों की इन वाजिब मांगों पर सुनवाई नहीं करती है तो स्वराज इंडिया संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाओं में पारदर्शिता की कमी का मुद्दा मजबूती से उठाएगी।

Wednesday, 6 September 2017

भारत-चीन सीमा विवाद India and China Border Dispute

India and China need to demarcate LAC

The LAC, starting from northwest of the Karakoram pass and ending at Arunachal Pradesh, has not been demarcated and is virtually passed on by word of mouth. This has led to differing perceptions regarding the alignment, with China making territorial claims in at least eight areas.

These are those areas where regular incursions and face-offs take place. They include Asaphila, Longju, Namka Chu, Sumdorong Chu, and Yangste in Arunachal Pradesh, Barahoti in Uttarakhand, and Aksai China and Demchok in Ladakh.
Even areas along the banks of the Pangong Lake in Ladakh, where a clash between Indian and Chinese troops took place on August 15, are under dispute. The LAC passes through the lake, but India and China do not agree on its exact location. The mountains sloping on the banks of the lake form finger-like structures.

What needs to be done?

The Line of Actual Control (LAC) has to be properly demarcated and simultaneously confidence building measures (CBMs) have to be conducted, military experts said. More points of contact, including regular meetings and setting up of a hotline between the two militaries, have to be created to prevent future transgressions, incursions and face-offs.

प्रतियोगी छात्रों के भविष्य से खेल रही यूपीएससी (Ambiguity in UPSC Civil Services Preliminary Examination 2017 affected thousands of aspirants)

यूपीएससी द्वारा इस बार 18 जून को आयोजित की गई सिविल सेवा प्रीलिम्स परीक्षा 2017 के जनरल स्टडीज पेपर में 8-10 ऐम्बिग्यूअस (अस्पष्ट) प्रश्न पूछे गये हैं।

यहां ऐम्बिग्यूअस प्रश्न से मतलब है कि जिस प्रश्न की बनावट के कारण उसके कई उत्तर संभव हो जाएं। सिविल सेवा प्रीलिम्स परीक्षा में ऐसे बहुविकल्पीय प्रश्न पूछे जाते हैं जिसमें चार विकल्प दिए जाते हैं और स्वाभाविक रूप से उनमें से एक विकल्प प्रश्न का सही जवाब होता है। पर ऐम्बग्यूइटी के कारण कई प्रश्नों में एक के बजाय दो-दो जवाब सही हो गये हैं।

यूं तो यूपीएससी के लिए ऐम्बग्यूइटी वाले सवाल पूछना कोई नई बात नहीं है। हर साल ही कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं. लेकिन इस साल ऐम्बिग्यूअस प्रश्नों की संख्या पिछले सालों की तुलना में ज्यादा रही और हद तो तब हो गई जब एक प्रश्न अत्याधिक घनघोर ऐम्बग्यूइटी वाला पूछ लिया गया। इतना ज्यादा ऐम्बिग्यूअस कि उस प्रश्न पर नामचीन इतिहासकारों में मतभेद हैं।

इस बार प्रीलिम्स के पेपर में ऐसे कम से कम 8 -10  सवाल पूछे गए। ऐसे में प्रीलिम्स में सेलेक्ट होना प्रतिभा से ज्यादा तो भाग्य पर निर्भर होता दिख रहा है  जोकि  छात्रों के साथ सरासर अन्याय है।

Demand for Transparency in UPSC

Demand for Transparency in UPSC at all levels, including;

1. Release Answer Key of Pre before Main examination

2. Justice to victims of Ambiguity in CSE Pre 2017 (compensatory attempt in 2018, irrespective of age)

3. Justice to victims of CSAT (minimum 2 compensatory attempt to aspirants appeared between 2011-2015)

4. Equality to Regional Languages at par with English

5. One Nation, One Age Group for individual categories (if upper age limit for general category aspirants is 37 for domicile of J&K, then why 32 for rest of the country ?)

6. Age calculation from 1st January, instead of current practice of calculating age from 1st July

7. Transparency in Main examination w.r.t scaling, biasness towards particular subjects

8. Unbiased Personal Interview so that aspirants from rural and middle class background couldn't get eliminated in final selection because of elitist outlook of interview panel

9. Mechanism to educate aspirants about preparation of CSE so that they couldn't get exploited by mushrooming coaching institutes

10. Independent expert committee to review entire selection process to minimise bureaucratic interferences in selection process (there are instances that 3-4 members of a single family get selected in All India Services, while aspirants of poor/middle class background were given lowest marks in interview and thus they were either eliminated in interview or couldn't get selected for IAS/IPS/IFS and other esteemed services.

#UPSCStopInjustice
#TransparencyInUPSC #AmbiguityInUPSCprelims2017
#SIR Students for Institutional Reforms

राष्ट्रीय पोषण रणनीति National Nutrition Strategy

नीति आयोग ने राष्ट्रीय पोषण रणनीति जारी की:

पोषण (Nutrition) मानव विकास का आधार है।
यह संक्रमण संबंधित बीमारी, अपंगता और मृत्यु में कमी लाने के साथ जीवन पर्यन्त सीखने की क्षमता और उत्पादकता बढ़ाता है।
यह मानवीय विकास, गरीबी में कमी तथा आर्थकि विकास के लिये महत्वपूर्ण है।

नीति आयोग ने राष्ट्रीय विकास एजेंडा में इसे ऊपर रखने का सुझाव देते हुए 05 सितम्बर 2017 को राष्ट्रीय पोषण रणनीति पर एक रिपोर्ट जारी की।

हरित क्रांति के जनक एम एस स्वामीनाथन और पद्म श्री एच सुदर्शन ने नीति आयोग के चेयरमैन डा. राजीव कुमार तथा सदस्य विनोद पॉल के साथ मिलकर यह रिपोर्ट जारी की।

आयोग ने पोषण में निवेश की वकालत करते हुए कहा कि विश्व में निम्न और मध्यम आय वाले 40 देशों में पोषण में निवेश का लागत-लाभ अनुपात 16:1 है।

हाल में प्रकाशित राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वे एनएफएचएस-4 में पोषण के मामले में कुछ सुधार दिखता है। महिलाओं और बच्चों दोनों में अपर्याप्त पोषण की स्थिति बेहतर हुई है। हालांकि, भारत की आर्थकि वृद्धि वाले देशों के समरूप अन्य देशों से तुलना की जाए तो यह गिरावट काफी कम है।

नीति आयोग का मानना है कि बाल कुपोषण की वजह से देश को आय में 9 से 10 फीसदी तक नुकसान उठाना होता है। थिंक टैंक ने पोषण रणनीति मसौदे में ‘कुपोषण मुक्त भारत’ पर जोर दिया गया है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि राज्य स्थानीय जरूरतों के हिसाब से इस दिशा में योजना बनाएं।

National Nutrition Strategy:

The national nutrition strategy calls for convergence between four proximate determinants of nutrition - 1. uptake of health services,
2. food,
3. drinking water & sanitation
4. income & livelihoods.
It envisages Kuposhan Mukt Bharat (कुपोषण मुक्त भारत) – linked to Swachh Bharat and Swasth Bharat.

The strategy lays down a roadmap for effective action, among both implementers and practitioners, in achieving our nutrition objectives.

It enables states to make strategic choices, through decentralized planning and local innovation, with accountability for nutrition outcomes.

It also gives prominence to demand and community mobilisation as key determinant to address India’s nutritional needs to bring behavioural change efforts to generate demand for nutrition services.

Need:

In India, 20% of children under five years of age suffer from wasting due to acute under-nutrition.

It pays an income penalty of 9 to 10% due to workforce that was stunted during their childhood.

Currently, there is lack of real time measurement of nutritional determinants, which reduces capacity for targeted action among most vulnerable mothers and children.

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